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राजयोग से गृहस्थ जीवन बना पवित्र आश्रम - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
राजयोग से गृहस्थ जीवन बना पवित्र आश्रम

राजयोग से गृहस्थ जीवन बना पवित्र आश्रम

शख्सियत

आबू रोड : सामाजिक परंपराओं के हिसाब से शादी के बंधन में बंधा व्यक्ति आध्यात्मिक जीवन अर्थात् ब्रह्मचर्य जीवन असंभव समझता है। गृहस्थ जीवन में होते हुए पवित्रता के साथ आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने वाला शायद ही कोई व्यक्तित्व मिसाल के रूप में देखने को मिलता है। महाराष्ट्र मुलुंड के रहने वाले पतिपत्नी बीके नरेंद्र नारायन भाई पटेल और बीके कविता ने पिछले 51 वर्ष से ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान से जुड़कर राजयोग अभ्यास से गृहस्थ जीवन को गृहस्थ आश्रम में बदल दिया। उन्होंने अपने इस शानदार जीवन के अनुभवों को शिव आमंत्रण के साथ साझा किया है…

जो धर्मप्रेमी था वो अब

आध्यात्मिक हो गया

मेरे शरीर का नाम नरेंद्र नारायनभाई पटेल है। मेरी लौकिक माताजी का नाम शांताबेन नारायनभाई पटेल है। लौकिक में दो बहनें और दो भाई है। दोनों बहनें ब्रह्माकुमारीज़ के ज्ञान में चल रही है। एक छोटी बहन नीला भांडुप एवं मुंबई सेवाकेन्द्र का संचालन करती है। मेरा एक छोटा भाई देवेन्द्र कुमार वह भी बचपन से ज्ञान में चल रहा है और पूरा सहयोगी है। बचपन से ही मैं देख रहा हूं कि हमारा परिवार धर्मप्रेमी था जो अब आध्यात्मिक हो गया है। सन् 1970 में मेरे लौकिक पिताजी को ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान का परिचय मिला। लौकिक मां भी ज्ञान में रेग्युलर चलने लगीं।

जागो, समय और

स्वयं को पहचानो

मुझे याद आता है कि हमारे पटेल समाज में ऐसा रिवाज था कि छोटेपन में ही बच्चों की शादी करवा देते थे। मेरी भी शादी बचपन में ही करवा दी थी। परंतु अहो सौभाग्य की सन 1969 में स्कूल के तरफ से आबू की ओर पिकनिक के लिए आया था। वहां मैंने ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान का अवलोकन किया और हम बच्चों को योग के कमरे में बिठाया। तब मुझे ब्रह्मा बाबा के चित्र को देख ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे मुझे ब्रह्मा बाबा कह रहे है कि बच्चों अभी जागो, समय और स्वयं को पहचानो। उस समय मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैं वहां से अपने गांव मेहसाना में आया तो मुझे आध्यात्म के साथ राजनीति में भी रुचि बढऩे लगी।

सामाजिक परंपरा अनुसार

छोटेपन में शादी हो गई

उस समय गुजरात के सीएम बाबूभाई जसुभाई पटेल थे। उनको बाबा का परिचय देकर आबू में ले आया। उनको भी बड़ा अच्छा लगा और इस ज्ञान को सुनने के बाद मेरे संस्कार-स्वभाव में भी परिवर्तन आने लगा। जिससे मेरे बचपन की तमोप्रधान की कई आदतें छूट गईं। फिर जब मैं वापस मुंबई आया तो ज्ञान-योग-मुरली की पढ़ाई में नियमित चलने लगा। लेकिन पिछले जन्म के हिसाब-किताब के अनुसार छोटेपन में की हुई शादी के बारे में परिवार वाले, समाज वाले घड़ी-घड़ी याद दिलाने लगे और मैंने भी सोचा मेरे होवनहार धर्मपत्नी जिसका लौकिक नाम कामिनी था। उनको भी यह सारा ज्ञान बताना चाहिए। सत्यता से उन्हें परिचित कराना चाहिए और फिर मैं गांव गया। पत्नी को मुंबई लौकिक घर मुलुंड ले आया।

कामिनी से

कविता हो गई

पत्नी को एक दिन बीके गोदावरी दीदी से मिलाया। मुलुंड में एक विशाल मेले का आयोजन किया था। उसको भी वहां लेके गया और वो मेले में आयी हुई आदरणीय दादियों से मिलाया, उनको सारी बातें अच्छी लगी। लेकिन सेवाकेन्द्र की बहनों का स्नेह प्यार और व्यवहार को देखकर उनकी कई उलझनें समाप्त होने लगीं। फिर उनका नाम दीदी ने कामिनी के बदले कविता रखा क्योंकि मुझे कविता बनाने का और गाने का बड़ा शौक था। घर के वातावरण को देखकर वो भी प्रभावित होने लगी और मेरे पवित्र और सत्यता के वायब्रेशन को प्रोत्साहन देने लगीं और उनके लौकिक मां-बाप को भी बाबा का परिचय देकर कहा कि मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूं। इस कलियुग में मुझे इतने अच्छे ससुराल में आपने भेजा। इस तरह मां-बाप की भी सेवा करते उनको भी स्वस्थ बनाया। अभी तक भी उनके घर में गीता पाठशाला चल रही है।

मुझे ज्ञानी और योगी

परिवार मिला

कविता बेन ने चर्चा में बताया कि मैं खुद को बहुत ही भाग्यवान समझती हूं। मुझे ज्ञानी और योगी परिवार मिला और हर प्रकार से सुखी रखा है। घर में जब सभी मधुबन आबू का वर्णन करते थे तो मुझे भी इच्छा होती थी की भगवान का स्थान मुझे भी देखना चाहिये। जहां भगवान आ चुके हैं। उस समय मेरी छोटी बहन नूतन बीके नीला बहन का समर्पण समारोह मधुबन मे होने वाला था। मुझे अचानक जाने का चान्स मिला जैसे कि प्यारे शिव बाबा ने मेरे दिल कीआवाज सुनी। मेरा मधुबन जाने का हुआ। मैंने जब कन्याओं का समर्पण समारोह देखा कि कैसे छोटी उम्र में ये बहनें अपने जीवन को प्रभु समर्पित कर रही हैं। यह देखकर मुझे अपने जीवन पर भी नाज हुआ कि सचमुच मैं एक भाग्यवान महिला हूं, जिसको इतना अच्छा घर भी मिला वर भी मिला और कोई बात की चिंता ही नहीं।

38 साल से

ब्रह्मचर्य व्रत का पालन

मैं निश्चिंत हो गई क्योंकि मुझे मधुबन में मेरे लौकिक पति ने बड़ी दादियों से भी मुझे मिलाया और मेरा परिचय भी कराया था। बड़ी दादियों से भी मुझे बहुत अच्छा ज्ञान और योग की अच्छी परवरिश मिली और मेरे धारणाओं को पक्का कराया। ऐसा पवित्र जीवन जीते 38 साल से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रही हूं। मुझे प्यारे बाबा के महावाक्य याद आते हैं कि कन्या वो जो पियर घर और ससुर घर दोनों का नाम बाला करें। यह मेरा अनुभव है कि मेरे लौकिक पति नरेंद्रजी और मैं उनकी लौकिक धर्मपत्नी घर-परिवार में रहते हुए भी खुश हूं।समय पर हम दोनों भी बाबा की याद में बैठते हैं। साथ में क्लास में जाते हैं, पवित्र जीवनजीते हैं और निश्चिंत रहते हैं। घर-परिवार व्यवहार इत्यादि को संभालते एवं कर्मयोगी बनकर जीवन जी रहे हैं और अन्य आत्माओं के प्रति भी यही शुभकामना करते हैं कि आप भी परमपिता परमात्मा का बनकर देवतुल्य बनने का जीवन जीकर देखो। हमें स्वयं भगवान भी कहते हैं। मेरे प्यारे बच्चों चिंता मत करो- मैं बैठा हूं और सच में ऐसा ही लग रहा है कि हमें स्वयं भगवान ही चला रहे हैं। अब तो दिल हर पल यही गाता है पाना था जो पा लिया अब और क्या बाकी रहा।


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