मन को कंट्रोल करना हमारी एक बहुत ही श्रेष्ठ स्थिति है। संसार में पहले हम सुनते थे की जो मनुष्य अपने मन को कंट्रोल कर लेता है, वह तो हवा को भी रोकने में समर्थ हो जाता है। बाबा ने भी कहा है – हम सेकंड में फुलस्टॉप लगाने की कोशिश करें तो अंत में हम कर्मातीत हो जाएंगे। हम इसकी निरंतर प्रैक्टिस करें -मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ, मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ, इस स्वमान की सीट पर बैठ जाएं और यह गुड फिलिंग करें की मैं मन की मालिक हूँ तो मन हमारे आदेश का पालन करने लगेगा। आखिर इस मन को हमें ठीक दिशा में तो लाना ही है। तो हम प्रैक्टिस करते रहे की इसकी रूचि व्यर्थ की ओर ना हो। व्यर्थ में मन बहुत भागता है, बहुत भटकता है। व्यर्थ में रूचि, व्यर्थ सोचने की आदत, इधर उधर की तृष्णाएं और इच्छाएं, देहधारियों के प्रति लगाव, संसार से बहुत कुछ पाना, मनुष्यों से बहुत कुछ कामनाएं- विषय वासनाएं, यह सब मनुष्य के मन को भटकाती है और ज्यादा भटकाया भी है – विषय वासनाओं ने, काम ने, क्रोध ने, अहंकार ने, लोभ ने, मोह ने, ईर्षा- द्वेष ने, बदले की भावना ने। जितना – जितना हम इनको छोड़ते चलेंगे, यह मन स्वत: ही धीमी गति से चलेगा। दूसरी प्रैक्टिस करें, नेगेटिव को पॉजिटिव में बदलने की। कोई ऐसी चिंता वाली बात हमारे सामने आ जाती है तो मनुष्य बहुत नेगेटिव सोचने लगता है। पता नहीं क्या होगा? कहीं यह ना हो जाएँ, वह ना हो जाएँ। लेकिन हम सदा यही सोचें- स्वयं भगवान मेरे साथ है, मेरा श्रेष्ठ भाग्य भी मेरे साथ है, मेरे पुण्य कर्म भी मेरे साथ है और मै स्वयं भी बहुत महान हूँ, तो मेरे साथ तो सब कुछ अच्छा ही होगा। ऐसे संकल्पो से अपने नेगेटिव को पॉजिटिव में बदलते चलें और हमारी मन की स्पीड धीमी होती चलें। जितनी संकल्पो की स्पीड हमारी सतयुग में थी, 8 10 थॉट्स पर मिनट्स, वैसी ही स्पीड अगर नेचुरल रूप से हमारी रहने लगें तो सेकंड में फुलस्टॉप लगाना अति सरल हो जाएगा। यह स्पीड को डाउन करने के लिए हमें तीन चार प्रैक्टिस करनी पड़ेगी। पहली प्रैक्टिस है स्वमान की दूसरी प्रैक्टिस है अशरीरी होने की तीसरी प्रैक्टिस है आत्मिक दृष्टि की और चौथी प्रैक्टिस है हम एक श्रेष्ठ महान लक्ष्य को जीवन में साथ लेकर चलें। एक विशेष पुरुषार्थ में सदा लगें रहे। तो नेगेटिव संकल्प स्वत: ही समाप्त होते रहेंगे। – स्वमान की कोई ना कोई प्रैक्टिस प्रति दिन, प्रति समय चलती ही रहे। आप देखेंगे जब आत्मिक दृष्टि का अभ्यास होगा, तो अनेक व्यर्थ संकल्प स्वत: ही बंद रहेंगे। जैसे – जैसे बीच – बीच में हमें अशरीरी होने का अभ्यास करेंगे मैं आत्मा अलग यह देह बिलकुल अलग, वैसे – वैसे संकल्पों की स्पीड डाउन होती चली जाएगी। हम यह निरंतर साधना करें क्यूंकि मन को साथ लेना यह बिना साधनाओ के संभव नहीं होगा और मन को साधे बिना हम सेकंड फुलस्टॉप नहीं लगा सकेंगे। सेकंड में फुलस्टॉप लगाने वालों के पास ही अत्याधिक साइलेंस पॉवर होती है और यह साइलेंस पावर आगे चलकर बहुत काम आएगी। अभी तो समय आ रहा है महाकाल का। जिन्होंने बहुत अच्छी साधना की है, जो स्वराज्य अधिकारी बने है, उन्हें पता चलेगा, उनके पास कितनी शक्तियां है। जब प्रकृति भी उनका आदेश मानेंगी, जब उन्हें ऐसा लगेगा की विनाश की घटनाओं को भी वह अपनी इच्छाओं के अनुसार दिशा दे सकते है। हम मन की स्पीड को स्लो डाउन करें और एक सेकंड में फुलस्टॉप लगाकर परमधाम में बाबा के साथ स्थित हो जाया करें। तो आज सारा दिन यह अभ्यास करेंगे – मैं मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ स्वराज्य अधिकारी हूँ।
सेकेंड में फुलस्टॉप का अभ्यास
May 25, 2021 समस्या-समाधानखबरें और भी