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देश और दुनिया में देवी-देवताओं के अलग-अलग रूप हैं, लेकिन एक जो चीज सबमें देखने को मिलती है वो है विधि-विधान और दिव्य कर्म। लगभग एक ही दायरे में आते हैं, इसलिए वह देवी कहलाती हैं। देवियों की पूजा के रूप में ही नवरात्र मनाया जाता है। वास्तव में शक्ति और साधना की देवी दुर्गा, काली और सरस्वती कहलाती है। आखिर इन देवियों में कौन सी ऐसी शक्ति प्राप्त है कि हर कोई अपनी मनोकामना लिए उनके शरण में चला जातायदि बारीकी से देखा जाए तो देवी का मतलब ही होता है दिव्य, अर्थात् दिव्य गुण वाली। दुर्गा का मतलब दुर्गुणों का नाश करने वाली। यदि नारी भी अपने अंदर आध्यात्मिक शक्ति का विकास कर ले तो वह गुणों की देवी है। इसलिए कहा गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता। अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है वहां देवी-देवता निवास करते हैं। मतलब साफ है कि जहां नारी की पूजा होती है, अर्थात् नारी देवी समान हो, दिव्य गुणों से भरपूर हो तो ही देवी है। वर्तमान समय में नारी को शक्ति स्वरूप देवी बन सबसे पहले खुद के अंदर से दुर्गुणों को समाप्त कर सद्गुणों को अपनाना चाहिए। यही शक्ति दुर्गा और काली कहलाएंगी।