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संकल्प में, वचन में, कर्म में जरा भी ठगी न हो – दादी जानकी - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
संकल्प में, वचन में, कर्म में जरा भी ठगी न हो – दादी जानकी

संकल्प में, वचन में, कर्म में जरा भी ठगी न हो – दादी जानकी

आध्यात्मिक

शिव आमंत्रण आबू रोड। हमारे ईश्वरीय स्नेह की शक्ति उसको बल दे, उसके निर्बलता का असर ग्लानी के रूप में हमारे अन्दर न आये। किसी का प्रभाव हमारे ऊपर न पड़े, बाबा की महिमा को सदा याद रखें। देवताओं से भी ज्यादा महिमा ऊँच ते ऊँच भगवान की है जिसने उन्हें ऐसा बनाया। अगर कोई-बाबा का अच्छा बच्चा है तो उसको अच्छा बनाने वाला कौन? – हमारा बाबा। हर बात से अपने मन को खाली करके, बाबा को दिल में बिठाना, औरों को दिल से बाबा की याद दिलाना। जो हमारे दिल में बात होगी वहीं सेवा में आयेगी। वही संग-सम्पर्क में आयेगी। दिल और मन का आपस में गहरा कनेक्शन है, जो कर्म में जरूर आता है। कोई कहे मेरे दिल में कुछ नहीं था, पता नहीं क्यों हुआ! इम्पासिबुल है। दिल की अच्छी भावना है तो अच्छा होगा जरूर, उसमें शक की बात है ही नहीं। हमारी भावना अच्छी हो, उसमें शक लाना यह भी भूल है। भावना अच्छी है तो होगा जरूर। आजकल अपने आपको बहुत समझ से चलाना है। अपने आपको नहीं ठगना है। ठगी करने का संस्कार भी बहुत पक्का हो गया है। चोरी का पता पड़ जाता है लेकिन ठगी का पता नहीं पड़ता है। अपने आपको दिखाते हैं कि मैं कोई ठगी नहीं करता लेकिन वह बड़े होशियार होते हैं। कई बातों को मिक्स कर देंगे। ठगी करने वाला यह नहीं समझता कि मैं अपने आपको ठगता हूं। भगवान से ठगी करते, बाहर से अच्छा दिखाना, अन्दर से दूसरा रहना – यह भी ठगी है। अन्दर बाहर साफ रहना – यह बाबा को बहुत पसन्द आता है।
दुनिया वाले भी, भगवान को न मानने जानने वाले भी समझें – यह अन्दर बाहर साफ हैं। इतनी हर इंशान को समझ है। जान जाते हैं यह अन्दर बाहर साफ है या नहीं है – यह फीलिंग आती है। जब संकल्प आता है बाबा को प्रत्यक्ष करें। बाबा को प्रत्यक्ष करना बड़ा सहज है, जितनी हमारी अन्दर बाहर सफाई सच्चाई है। कर्म में, संकल्प में वचन में जरा भी ठगी नहीं है, मिक्सचर नहीं है तो बाबा को प्रत्यक्ष कर सकते हैं। अपने आपको अच्छी तरह से पहचानूं तो कहेंगे मैं योगिन हूं। देवता धर्म वाली आत्मा हूं। घर जाने की तैयारी में लगी हूं। कोई भी बात में जरा भी आकर्षण नहीं होगी, संसार समाचार सुनने का भी ख्याल नहीं आयेगा। यह समाचार सुनूं कैसा है, क्या है? उससे भी उपर में सतयुग में कोई दैवीगुण आपे ही नहीं आ जायेंगे, यहाँ धारण करने पड़ेगे। दैवीगुण सतयुग में नेचरल होंगे लेकिन धारणा यहाँ की होगी। कोई सांसारिक सुखों की आकर्षण न हो। यहाँ जो दु:ख-सुख, हार जीत होती है उसमें भी समान रहूं। सहनशीलता हो, सन्तुष्ट रहूँ। अन्दर ही अन्दर अपने श्रेष्ठ संकल्प कर्म से अपना अच्छा भाग्य बनाने की धुन में रहूं और किसी को देखूं तो अच्छी मीठी रूहानी दृष्टि से देखूं। हमारा एक तो रूहानी कनेक्शन है, दूसरा संगम पर हम बहन भाई एक परिवार हैं और कोई सम्बन्ध तो है नहीं आत्मा भाई-भाई के दृष्टि की अन्दर से प्रैक्टिस हो। इसमें ही सबसे ज्यादा सेफ्टी है। सदा बाबा की याद में रहने के लिए देही-अभिमानी रहने के लिए, रूहानियत की राहत में रहने के लिए सबको रूहानी स्नेह की शक्ति देने के लिए गुप्त अभ्यास – हम आत्माएं भाई-भाई है।

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