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दादी हमेशा कहतीं थीं मेरा संसार और संस्कार दोनों बाबा हैं: बीके नीलू - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
दादी हमेशा कहतीं थीं मेरा संसार और संस्कार दोनों बाबा हैं: बीके नीलू

दादी हमेशा कहतीं थीं मेरा संसार और संस्कार दोनों बाबा हैं: बीके नीलू

शख्सियत

14 साल की उम्र से ही दादी के साथ अंग-संग रहने का मिला मौका, खुद को समझती हूं भाग्यशाली

शिव आमंत्रण, आबू रोड । मैं बचपन से ही अपने मम्मी-पापा के साथ मधुबन में आना-जाना करती थी। जब एक बार मधुबन में आई थी, तभी बड़ी दादी ने संदेशी दादी से पूछा यह बालकी गुलजार दादी के साथ रह सकती है? तभी संदेशी दादी ने बोला मैं पूछकर बताती हूं इनके माता-पिता से। इस पर हमारे घर वाले राजी नहीं हो रहे थे कि मैं अपना जीवन इधर आध्यात्मिक क्षेत्र में समर्पित करूं। लेकिन मेरी बहुत इच्छा थी। यह लाइफ मुझे बहुत अच्छा लगता था, समाज सेवा करना बाबा का बनकर रहना अच्छा लगता था। एक बार प्रकाशमणि दादी ने मुझे बुलाकर पूछा कि आप गुलजार दादी के साथ रहेंगी। मेरी उम्र 14 साल की थी उस समय मैंने बगैर सोचे-समझे हां कर दिया। फिर गुलजार दादी ने भी कहा कि मुझे यह बालकी पसंद है। फिर उसी दिन से मैं दादी गुलजार जी के साथ रहने लगी।
यह कहना है संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी गुलजार के अंग-संग 35 वर्षों तक रहीं बीके नीलू बहन कहा। उन्होंने शिव आमंत्रण से विशेष बातचीत में दादी के जीवन से जुड़े अनछुए पहलुओं को उजागर किया। साथ ही अपने जीवन यात्रा के अनुभव सांझा किए।

हर छोटी-छोटी बातों को दादी ने मुझे सिखाया
बीके नीलू बहन ने बताया कि शुरुआत में छोटी होने के कारण मुझे सब काम नहीं आते थे। लेकिन दादी ने मुझे सबकुछ सिखाया। कैसे सबके साथ बात करना है कैसे संगठन में रहना है। हर छोटी-छोटी बातों को दादी ने बताया। वर्ष 1985 की बात है जब पहले दादी में बाबा आते थे तब पूरी रात ओम शांति भवन में हम दादी के साथ ही होते थे। क्योंकि बाबा पूरी रात शाम को 6:30 बजे से लेकर सुबह के 4:30 बजे तक रहते थे। तभी से मैं पूरे टाइम दादी के साथ बाबा के साथ ही रहती थी। उसके बीच में कई ऐसे यज्ञ के कारोबार होते थे। उस समय हमें बड़ी दादी बोल कर जाती थीं कि आप बाबा से पूछ कर रखना। बाबा की भाषा अव्यक्त भाषा होती थी फिर भी मैं सबकुछ समझती थी। बाबा जो बोलते थे मैं समझ जाती थी। फिर बड़ी दादी आकर मुझसे पूछती थीं आपने बाबा से पूछ कर यह सवाल रखा तो मैं दादी को बताती थी कि मैंने सारी बातें बाबा से पूछ ली हैं।

बाबा अपना काम कराने के बाद हमारी बुद्धि को क्लीयर कर देता
बड़ी दादी को बताने के बाद फिर मैं सब कुछ भूल जाती थी। छोटी होने की वजह से हर कोई पूछते रहते थे बताओ ना, बाबा ने क्या बताया, बाबा ने क्या बोला, बाबा से क्या बात करते हो? फिर मैं बोल देती थी कि मुझे कुछ याद नहीं है लेकिन लोग समझते थे कि यह जान-बूझकर नहीं बताना चाह रही है लेकिन सच्चाई यही था कि बाबा अपना काम कराने के बाद हमारी बुद्धि को क्लीयर कर देता था उसके बाद मुझे कुछ याद ही नहीं रहता था। दादी के साथ रहते- रहते आगे बहुत कुछ पाठ खुलता गया कई बीमारियों का भी सामना हुआ। हम ब्रह्मा बाबा की कहानियां जरूर सुनते थे कि बाबा कैसे थे, कितने पावरफुल थे, लेकिन वह सब हमने दादी में प्रैक्टिकल रूप में देखा। दादी गुलजार हमेशा इतनी गंभीर रहती थीं और गंभीर रहकर हर कार्य करती थीं।
दादी बहुत कम बोलती थीं ऐसा नहीं कि बहुत वाचा में आएं। परंतु दादी गंभीर रहकर बहुत कुछ कह जाती थीं। दादी के सामने कोई भी व्यक्ति आता था तो वह संतुष्ट होकर जाता था। दादी के सामने भी कई समस्याएं आती लेकिन सब शांति से निपट जाता था।

लोग समस्याएं लेकर जाते लेकिन सामने भूल जाते
जैसे लोग कहते हैं बाबा के सामने लोग शिकायत लेकर जाते थे लेकिन तब उनके सामने पहुंचने के बाद सब भूल जाते थे। उसी तरह दादी के सामने भी लोग ऐसे ही अपनी बातें समस्याएं लेकर जाते लेकिन भूल जाते थे। दादी के सामने जो भी आते थे, सभी संतुष्ट होकर ही जाते थे। दादी का संस्कार ही संतुष्ट रहकर दूसरों को संतुष्ट करना था। कई बार दादी से लोग पूछते थे इतना देर आप कैसे स्थिर रहते हैं। दादी में बाबा ऐसे आते थे जैसे बहुत ताकतवर व्यक्तित्व आई हो। मैं दादी से कई बार पूछती थी आप ऊपर जाते हैं तो ऐसा क्या महसूस होता है? दादी बोली बाबा मेरा इंतजार करता है, मैं सबकुछ बाबा को सुना देती हूं।
फिर बाबा आ जाने के बाद दादी को कुछ पता नहीं होता था। बाबा अपना कार्य सब करा लेता, दादी को कुछ पता नहीं चलता था। बाबा जाने के बाद दूसरे दिन दादी खुद मुरली पढ़ती थीं। कई बार हम दादी से पूछते थे कि बाबा ने आपको क्या-क्या बताया। दादी कुछ नहीं बोलती थे। दादी हमेशा एनर्जेटिक रहती थीं। दादी की स्थिति हमेशा एक रस रहती थी। कोई बड़ी बात है या छोटी बात आए हर परिस्थिति में को आगे रखती थीं और कहते थे जो भी करेगा जो होगा सब बाबा ही करेगा। मैं बस निमित्त मात्र हूं, बाबा ने निमित्त बनाया है।

बाबा के अलावा अपने मन से चली ही नहीं
मेरा यही अनुभव है कि दादी जब नॉर्मल रीति से रहती थीं और जब बाबा उनके अंदर प्रवेश करता था तो दोनों अवस्था में काफी अंतर रहता था क्योंकि जैसे कोई छोटे होते हैं, दादी नॉर्मल अवस्था में वैसे ही होती थीं और जब बाबा उनके अंदर आता था तो वह काफी ऑलमाइटी अथॉरिटी दिखती थीं। दादी को जो भी बाबा बताता था वह हर किसी से तुरंत शेयर नहीं करती थीं। उसको खुद प्रैक्टिकल में करती थी। फिर बड़ी दादी को बताती थीं। इसलिए दादी गुलजार बड़ी दादी को छोडक़र कहीं नहीं जाती थीं। उनको देखकर लगता था कि बाबा ने उनको कुछ इशारा दिया हुआ है इसलिए कहीं नहीं जाती हैं। दादी कभी बाबा के अलावा अपने मन से चली ही नहीं। जब दादी जानकी जी ने शरीर छोड़ा तब मैंने दादी को बताया तो दादी कहती कि मुझे सबकुछ पता है। मैं वतन में गई थी और दादी जानकी को देखा, बाबा के साथ बैठी थीं।

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