शिव आमंत्रण/आबू रोड (राजस्थान)।हमारा जो वैदिक मूल है उसी को ब्रह्माकुमारीज़ में प्रोत्साहित किया जाता है। क्योंकि शिव सदा निराकार हैं। शिव की महिमा को ही हमारे प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने बताई है। उसी को आगे बताते हुए ब्रह्माकुमारी बहनें सेवा कर रही हैं। ब्रह्माकुमारीज़ का सनातन का ही काम है। संस्था द्वारा ज्ञान देकर लोगों के जीवन से कुरुतियों और द्वंद से बाहर निकाला जा रहा है। ढपोसले से बाहर निकाला गया है। यह बात शिव आमंत्रण से विशेष बातचीत में जोधपुर से पधारे महामंडेलश्वर गौऋषि स्वामी ज्ञानस्वरूपानंद अक्रिय महाराज ने कही। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मैंने यहां जो ज्ञान समझा है उसमें मूल वैदिक धर्म की ही बात कही गई है। जैसे वैदिक में भी आहारप्रत्याहार, धारणा और ध्यान, ये हमारी समाधि के अंग हैं। यही पहले पंतजली ऋषि ने बताए हैं। इन्हीं बातों को यहां बताया जा रहा है कि जैसा हमारा चिंतन-मनन होगा, विद्यासन होगा, वैसे हमारे शरीर के अंदर प्रक्रिया होगी। यदि हमारे अंदर अध्यात्मिक चिंतन है तो शरीर में किसी तरह की बीमारी नहीं आ सकती है। बीमारी पैदा होने का कारण है टेंशन। टेंशन तब होता है जब हम अध्यात्म में नहीं होते हैं। अध्यात्म का मतलब है प्रकृति और पुरुष। स्वयं के भीतर उतरना, झांकना, स्वचिंतन, स्व की खोज ही अध्यात्म है। जब तक आप अपनी खोज नहीं कर पाओगे तब तक परमात्मा की खोज नहीं कर पाओगे।अपने को जाना तो जगत को जाना।
यहां सब शिव बाबा की साधना में रत हैं
स्वामी ज्ञानस्वरूपानंद महाराज ने कहा कि जिनके विचारों में शुद्धता हो, विचार पवित्र हों, भाव श्रेष्ठ हो ऐसे लोग ही देवता कहलाते हैं। माउंट आबू की पवित्र धरा में हजारों ब्रह्माकुमार भाई-बहनें शुद्ध-पवित्र भाव के साथ तपस्या कर रहे हैं। यहां जितने भी ब्रह्माकुमारकुमारियों से मुलाकात हुई सबके पवित्र भाव हैं। यहां अभद्रता जैसी कोई चीज नहीं दिखी। यहां सब एक-दूसरे से दिल से मिलते हैं। परमात्मा शिव बाबा की साधना में रत हैं। स्वयं की खोज से ही विश्व शांति आएगी। जब इस शरीर, मन में शांति आएगी तभी विश्व में शांति आ सकती है। यदि शरीर में ही अशांति, बेचैनी है तो शांति संभव नहीं है। अशांत व्यक्ति को सारा संसार अशांत ही दिखेगा। निराकार शिव बाबा, भोलेबाबा के ध्यान से ही मन शांत होगा। नारी को शक्ति कहा गया है। शक्ति को ही अंबा, जगत अम्बा कहा गया है।
हर व्यक्ति की बुद्धि अलग, इसलिए अनेक पंथ-धर्म बने हैं-
उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति की अलग-अलग बुद्धि होती है। इस कारण अनेक पंथ-धर्म बन जाते हैं। मुख्य हमारा वैदिक सनातन धर्म है। वेद कोई पुस्तक नहीं है। वेद विद् धातु से बना है। जिनको हम परमात्मा, शिव, ईश्वर कहते हैं वह स्वयं रचित हैं। पहले हमारे यहां कोई चीज पढ़ाई नहीं जाती थी सिर्फ स्मरण कराई जाती थी। पहले कोई शिष्य ऋषि-मुनियों के यहां 12 साल तक रहता था और उच्चारण करके उसे सिखाया जाता था। उससे उसकी दीक्षा दिलाई जाती थी। वास्तव में वह मंत्र स्वयं प्रकट होकर उस व्यक्ति का वरण करता था, उससे उसकी रक्षा होती थी और उसके जीवन का उद्धार होता था। लेकिन अब वह काल खत्म हो गया है और भौतिक काल आ गया है। जबसे भौतिक काल आया है तब से लोगों की स्मृति कम हो गई है।
हमारी देव भाषा संस्कृत है-
वेद व्यास महाराज जी आए। इनके पहले कोई पुस्तक नहीं थी। इन्होंने मंत्रों को चार भागों- कर्मकांड, साधना कांड, उपासना कांड और ज्ञान कांड। एक लाख मंत्रों को कलमबद्ध करके ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और यथर्ववेद की रचना की। तब से इन्हें सरल भाषा में समझाया गया। हमारी देव भाषा संस्कृत है। आज की दुनिया में संस्कृत भाषा लुप्त हो गई है। इससे ग्रंथों का जो भाव है वह लोगों को समझ नहीं आता है।
सनातन धर्म परमात्मा से जोड़ता है-
मूल हमारा वैदिक धर्म है। उसे छोड़कर आज अनेक मत-मतांतर बन गए हैं। आज सनातन धर्म में अनेक वायरस पैदा हो गए हैं। जो हमें सत्य से, परमात्मा से भटकाने वाले हैं। जो वैदिक धर्म की चर्चा करते हैं चाहे वह सन्यासी हों, सफेद कपड़ों में हों या पेंट शर्ट वाले हों वह हमारे धर्म के हैं, परिवार के हैं। आज ज्यादातर संस्थाओं में भटकाने वाला काम किया जा रहा है। सनातन धर्म खरा सोना, सत्य है जो हमें परमात्मा से जोड़ता है।
स्वामीजी 20 साल से गोसेवा में जुटे-
बता दें कि स्वामी ज्ञानस्वरूपानंद महाराज बाल्यकाल से ही ब्रह्मचारी रहते हुए सन्यास धर्म अपनाया। पिछले 20 वर्षों से गौ माता की सेवा कर रहे हैं। प्रमुखता से जैन बंद के सामने पाली रोड कांकाणी में गौ सेवा संस्थान की शुरुआत की। यहां दुर्घटना में घायल गोवंश का निशुल्क उपचार किया जाता है। साथ ही आनंद धाम गौशाला, आरती नगर महादेव गौशाला पाल में असहाय गोवंश की देखरेख की जाती है। स्वामीजी स्वयं गोमाता का उपचार करते हैं।