– हजारों भाई-बहनों ने शामिल होकर दी अंतिम विदाई
– राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दुख जताते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की
– विश्व के कई देशों से भी पहुंचे भाई-बहन
– मुंबई के डॉक्टर बोले- जीवन में ऐसा पहला मरीज देखा जिन्होंने कभी नहीं बताया कि उन्हें क्या दर्द है
शिव आमंत्रण,13 मार्च, आबू रोड (राजस्थान)। राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी शनिवार को पंचतत्व में विलीन हो गईं। अंतिम संस्कार सुबह 10 बजे ब्रह्माकुमारी संस्थान के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय आबूरोड, शांतिवन में किया गया। अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, महासचिव बीके निर्वैर और दादीजी की निज सचिव बीके नीलू बहन ने उन्हें मुखाग्नि दी।
बता दें कि दादी हृदयमोहिनी ने 11 मार्च को सुबह 10.30 बजे मुंबई के सैफी हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली थी। इसके बाद उनके पार्थिक शरीर को एयर एंबुलेंस से शांतिवन लाया गया, जहां देश-विदेश से आने वाले लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। हजारों की संख्या में मौजूद बीके भाई-बहनों ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए दादीजी की शिक्षाओं को जीवन में उतारने, उनके बताए कदमों पर चलने और उनके समान योग-साधना कर खुद को परिपक्व बनाने का संकल्प लिया।
शनिवार सुबह 9 बजे अंतिम यात्रा निकाली गई। इस दौरान ऊं धुन करते हुए हजारों भाई-बहन पीछे चल रहे थे। अंतिम संस्कार के दौरान संस्थान के कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, छग के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान के मुख्यमंत्री व राज्यपाल के द्वारा भेजे गए शोक संदेश को पढ़कर सुनाया।
12 लाख भाई-बहन और 46 हजार बहनों की थीं आदर्श-
ब्रह्माकुमारी से देश-विदेश में जुड़े 12 लाख भाई-बहनों और 46 हजार समर्पित ब्रह्माकुमारी बहनों की दादी आदर्श थीं। उनके द्वारा उच्चारित एक-एक शब्द लाखों लोगों के जीवन को बदलने, उसे अपनाने और आगे बढ़ाने के लिए वरदानी बोल होते थे। अस्वस्थ होने के बाद भी दादीजी अंतिम समय तक लोगों के लिए प्रेरित करतीं रहीं।
ड़ॉक्टर बोले- दादी के चेहरे पर कभी दर्द की फीलिंग नहीं देखी
मुंबई से आए सैफी हॉस्पिटल में दादीजी का इलाज करने वाले डॉक्टर्स डॉ. दीपेश अग्रवाल, डॉ. प्रसन्ना, डॉ. आकाश शुक्ला, डॉ. निपुन गंगवाला, डॉ. मनोज चावला, डॉ. जिगर देसाई ने अपने-अपने अनुभव बताते हुए कहा कि हम खुद को भाग्यशाली समझते हैं कि दादीजी जैसी दिव्य और महान आत्मा का इलाज करने का मौका मिला। जीवन में ऐसा पहला मरीज देखा जिन्होंने कभी नहीं बताया कि उन्हें क्या दर्द है। हमारे जीवन का यह पहला अनुभव रहा है कि किसी मरीज के इलाज के दौरान दिव्य अनुभूति हुई। बीमारी के बाद भी दादीजी के चेहरे पर कभी दर्द, दुख या उदासी की फीलिंग नहीं देखी। दादीजी के साथ के अनुभव को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।
दादी के साथ सखी की तरह रही
शुरू से ही दादी हृदयमोहिनी के साथ सखी की तरह रही। दादी का बचपन से ही शांत और गंभीर स्वभाव था। उनकी बुद्धि की लाइन इतनी क्लीयर थी कि कुछ ही सेकंड में वह ध्यानमग्न हो जाती थीं। उनका जीवन दिव्यता, पवित्रता और योग-साधना के प्रति अद्भुत लगन का मिसाल था।
– दादी रतनमोहिनी, अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका, ब्रह्माकुमारी