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नि:स्वार्थ रूप से की गईं सेवाएं एक दिन अवश्य फल्लवित होती हैं - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
नि:स्वार्थ रूप से की गईं सेवाएं एक दिन अवश्य फल्लवित होती हैं

नि:स्वार्थ रूप से की गईं सेवाएं एक दिन अवश्य फल्लवित होती हैं

बोध कथा


नर्स के रूप में हम तीन डायमंड विभूतियों के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं। पहला महात्मा गांधी जो फादर ऑफ नेशन कहे जाते हैं। महात्मा गांधी के जीवन को जब हमने पढ़ा कि गांधीजी कैसे बड़े हुए, उनके जीवन में कौन-कौन सी धारणाएं थीं। उनके जीवन का बचपन से लेकर बड़े होने तक, बचपन में चोरी, मांस खाया और उसके पश्चाताप तक सबकुछ जो उन्होंने किया। कैसे एक-एक भूल को उन्होंने सुधारा, कैसे वो आगे बढ़े और कैसे इस देश का इतना बड़ा व्यक्तित्व बने। साबरमती का संत तथा राष्ट्रपिता जिसे आज कहते हंै। कैसे इस व्यक्ति ने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से अपने जीवन की भूलों को ठीक करते हुए आगे बढ़ते हुए कहां से कहां पहुंच गए।
दूसरा हमारे समाज में पालना और सेवा का एक अभिप्राय शब्द नर्स भी है जिसे अंग्रेजी वर्ण में तोड़ कर व्याख्या किया जाए तो सुंदर अर्थ निकलता है। एन से नोबिल्टी अर्थात् चरित्र की महानता, यू से अप-टू-डेट अर्थात् अपने ज्ञान में संपूर्ण जागरूक, आर से रेस्पॉन्स, एस से स्किलफुल ज्ञान केवल थ्योरी का नहीं लेकिन प्रैक्टिकल और इ से एमपिथि अर्थात् केवल सहानुभूति नहीं समानुभूति। नर्सेज आंदोलन की शुरुआत करने वाली महिला फ्लोरेंस नाइटेंगल इंग्लैंड में जन्मी थीं। ये महिला 1820 ई. में एक उच्च घराने में पैदा हुई थी। वह कैसे इतनी बड़ी व्यक्तित्व हुईं? उस जमाने में नर्स के प्रोफेशन को इतनी मान्यता नहीं थी। लोग इसे ऊंचा प्रोफेशन नहीं समझते थे। मरीजों की हालत उस समय बहुत खराब रहती थी। कभी कपड़े नहीं बदले जाते तो कभी बेड की चादर नहीं बदली जाती थी, चारों तरफ गंदगी रहती थी। उस समय घर का विरोध सहन करते हुए इस महिला ने फैसला किया कि मुझे नर्स बनना है। अपनी डायरी में उन्होंने बहुत अच्छी बात लिखी है कि मुझे प्रभु ने आवाज दी है कि मुझे अपनी जिंदगी सेवा में लगानी है। उस युग में सेवा का सोचना कितनी आश्चर्यजनक बात है। ऐसी ये महिला जिन्हें लेडी विद् लैंप कहा जाता है।
इतिहास में एक प्रसिद्ध युद्ध हुआ था क्रीमियन वॉर, जिसमें अपने 38 साथियों के साथ वह गई और युद्ध में जो घायल सिपाही थे उनकी रात में सेवा करती थी। जब सारे चिकित्सक चले जाते थे तो उनके जाने के बाद वह हाथ में एक लालटेन लेकर रातभर सेवा करती थी। उन्होंने अपनी डायरी में जो अनुभव लिखे उसमें ऐसी बहुत ही चमत्कारी बातें हैं। जब सेवा का संकल्प आया अविवाहित रही, सारा जीवन सेवा में लगा दिया, अपने लिए कभी भी फीमेल का उच्चारण नहीं किया। स्वयं के लिए वह कहती थी, मैन ऑफ एक्शन, मैन ऑफ बिजनेस, मैन ऑफ सर्विस।
तीसरी विभूति प्रजापिता ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी जानकी जी हैं। इन्होंने अपना जीवन जबसे इस यज्ञ की शुरुआत हुई और जब से वो यहां आई शुरू से ही नर्स की भूमिका निभाई है। एक परिचारिका के रूप में उन्होंने यहां सेवा की। ऐसी दादी जानकी जी 1978 में टेक्सास अमेरिका में उन पर बहुत सारे प्रयोग किए।उसके बाद दादी जानकी जी को ‘द मोस्ट स्टेबल माइंड इन द वल्र्ड’ डिक्लेअर किया गया। तो ऐसी तीन महान विभूति एक तरफ फादर ऑफ द नेशन, दूसरी तरफ द लेडी विद् लैंप और तीसरी तरफ ‘द मोस्ट स्टेबल माइंड इन द वल्र्ड’ तो ये कितना अदभुत समागम है।
संदेश: समाज के कल्याण भाव को लेकर की गई नि:स्वार्थ सेवा अवश्य फल्लवित होती है। जैसे सामाजिक सेवाओं की प्रतिमूर्ति बनकर महात्मा गांधी, फ्लोरेंस नाइटेंगल और दादी जानकी ने अपने एक-एक सेेकंड को समाज के लिए लगा कर अपने जीवन को सफल बनाया। यही हमारे जीवन का असली उद्देश्य होना चाहिए।

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