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मातेश्वरी 18 वर्ष की आयु में नारी जाति की बनी आध्यात्मिक प्रेरणा स्रोत - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
मातेश्वरी 18 वर्ष की आयु में नारी जाति की बनी आध्यात्मिक प्रेरणा स्रोत

मातेश्वरी 18 वर्ष की आयु में नारी जाति की बनी आध्यात्मिक प्रेरणा स्रोत

राजस्थान राज्य समाचार

भरतपुर मम्मा डे कार्यक्रम में व्यक्त विचार

शिव आमंत्रण, भरतपुर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेवा केंद्र भरतपुर (राजस्थान) पर संस्था की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती का 56 वा पुण्य स्मृति दिवस कार्यक्रम विश्व शांति भवन के अंतर्गत महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय भरतपुर के उपकुलपति डॉ. राजेश धाकरे, पीठाधिश्वर सिद्ध पीठ खोरी, भरतपुर के महाराज डॉ. कौशल किशोर दास, कृषि विभाग, भरतपुर के उपनिदेशक डॉ. देशराज सिंह, ब्रह्माकुमारीज की भरतपुर जिला प्रभारी बीके कविता, आगरा उपक्षेत्र की संयुक्त प्रभारी बीके बबीता, बीके प्रवीणा की उपस्थिति में कार्यक्रम संपन्न हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत ईश्वरीय स्मृति के गीत के साथ प्रभु चिंतन करो प्रभु प्यारों, दो घड़ी मन प्रभु से लगा लो से की गई,
मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. प्रो. राजेश धाकरे ने कहा, मातेश्वरी के जीवन में समर्पण भाव बहुत था। उनकी प्रेरणा से आज देश-विदेश में 9000 शाखाएं, 140 देशों में 50,000 से अधिक समर्पित राजयोगी शिक्षिकाये, 20लाख से अधिक परिवार तन मन धन से ईश्वरीय सेवाए दे रहे हैं। मातेश्वरी अपनी त्याग-तपस्या से हर मनुष्य आत्मा के दिल में आज भी बसती हैं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में भरतपुर के संयुक्त कृषि निदेशक डॉ. देशराज सिंह ने कहा, सत्य ही ज्ञान है, सत्य ही विज्ञान और सत्य ही ईश्वर है। हम समाज के लिए, देश के लिए दुनिया के लिए अपना जीवन मातेश्वरी जी की भांति समर्पित करें तो ही जीवन की सार्थकता है। तभी मातेश्वरी जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
राजयोग की शिक्षा का महत्व बताते हुए भरतपुर की सह प्रभारी बीके बबीता ने कहा, आत्मा और परमात्मा का मिलन ही राजयोग है। अपनी इंद्रियों और कर्मेंद्रियों पर शासन करना ही राजयोग है। अंत में उन्होने राजयोग का अभ्यास भी कराया।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए बीके कविता ने कहा, मातेश्वरी जगदम्बा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्रथम मुख्य प्रशासिका थी तथा इस यज्ञ की प्रथम यज्ञ माता स्थापित हुई। सन 1936 में मातेश्वरी 18 वर्ष की आयु में यज्ञ में आई और नारी जाति की आध्यात्मिक प्रेरणा स्रोत बनी। उन्होंने यज्ञ को सर्व दैहिक बंधनों से मुक्त कराया। 24जून सन 1965 तक उन्होंने ईश्वरीय आज्ञा पर चलकर लगभग 400 कन्या माताओं का ऐसा संगठन तैयार किया जिसके आधार पर यह संगठन विश्व भर में 140 देशों में परमात्म शिक्षाओं को देकर भारत की संस्कृति की रक्षा कर सनातन मूल्य पुनर्जीवित कर रहा हैं। मातेश्वरी के संकल्प, बोल और कर्म एक समान थे। उनकी प्रेरणा से लाखों भाई-बहन आध्यात्मिकता से जुड़े और अपना जीवन मानव से देवतुल्य बनाया। बीके जुगलकिशोर सैनी ने सभी का धन्यवाद किया।
बीके प्रवीणा ने ईश्वरीय स्मृति का गीत प्रस्तुत किया गया। बीके गीता ने संस्था का परिचय दिया। लवली, चाहत, चहक आदि बाल कलाकारों ने दिव्य नृत्यों की प्रस्तुति दी।

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