डायबिटीज (मधुमेह) के विभिन्न प्रकार:
डायबिटीज का निवारण (प्रीवेंशन), उपचार (ट्रीटमेंट) तथा इसके दुष्प्रभावों (कॉम्प्लिकेशन) से बचने के लिए हमें इस बीमारी के विभिन्न रूपों को पहचानना होगा। तो आइए हम चर्चा करते हैं कि यह बीमारी कितने प्रकार की होती है…
डायबिटीज मुख्यत: चार प्रकार की होती है।
१) टाइप वन डायबिटीज
२) टाइप टू डायबिटीज
३) गर्भा अवस्था में डायबिटीज (जेस्टेशनल) डायबिटीज
४) अन्य विशिष्ठ प्रकार (अदर स्पेसिफिक टाइप अथवा सेकेंडरी/डायबिटीज)
टाइप वन डाइबिटीज
इसे इंसुलिन डिपेंडेन्ट डायबिटीज भी कहा जाता है क्योंकि इस प्रकार की डायबिटीज से ग्रसित व्यक्ति के शरीर में इंसुलिन न के बराबर क्षरित नहीं होती है। अत: जिस किसी को भी इस प्रकार की डायबिटीज होती है, उन्हें इंसुलिन का इंजेक्शन नियमित रूप से लगाना पड़ता है। अन्यथा जीवित रहना असंभव है। आज से एक शताब्दी पहले, जब इंसुलिन प्रचलित नहीं था, जिस किसी को भी टाइप वन की डायबिटीज होती थी वह मृत्यु को प्राप्त होता ही था। परन्तु इंसुलिन के कारण आज करोड़ों मनुष्य एक सुंदर जीवन जी रहे हैं।
कुछ ज्ञानतव्य बातें
टाइप वन की डायबिटीज मुख्यत: ५ से ६ साल की आयु से लेकर १८ से २० साल की उम्र तक बच्चों में ही दिखाई देती है।
आजकल बड़ी उम्र की वयस्क व्यक्तियों में भी यह दिखाई देने लगा है। वयस्क व्यक्ति में जब इस प्रकार डायबिटीज दिखाई देती है तो उसे लाडा कहा जाता है।
इस प्रकार के डायबिटीज के मुख्य कारण को जानना संभव नहीं हुआ है। परंतु कुछ प्रतिशत मरीजों के शरीर में एक प्रतिक्रिया के कारण पैंक्रियाज ग्रंथी के बीटा सेल्स बिल्कुल ही नष्ट हो जाते हैं और शरीर से इंसुलिन का स्त्राव प्राय: नष्ट हो जाता है।
टाइप वन डायबिटिज के लक्षण
इस प्रकार की डायबिटिज अचानक ही शुरू होती है और कुछ दिनों में ही इस तरह के लक्षण दिखाई देते हैं…
बार-बार पेशाब आना, रात में पेशाब के कारण बार-बार उठना। बहुत भूख लगना, छोटे बच्चे बड़ों की तरह भोजन खाने लग जाते हैं।बहुत प्यास लगना गला सूख जाना।
एक-दो महीने के अंदर ही ५- १० किलो वजन घट जाना। बहुत ही कमजोरी महसूस होना।
विशेष ध्यान देने योग्य बातें
अगर किसी बच्चे के जन्म से ही या एक साल आयु के अंदर ही डायबिटीज होती है तो यह टाइप वन नहीं होती है। लेकिन यह किसी न किसी अन्त: स्त्रावी ग्रंथियों के खराबी के कारण होती है। इसलिए इन बच्चों की पूरी तरह जांच और उपचार करने के लिए एंडोक्राइनोलेजिस्ट से तुरंत परामर्श कर लेना चाहिए।
टाइप वन डायबिटीज में किसी प्रकार की गोली, कैप्सूल वा चूर्ण आदि बिल्कुल ही काम नहीं करता है। परंतु नुकसानकारक भी है। इसलिए अन्य किसी भी प्रकार का उपचार करने की कोशिश करने के बजाय शीघ्र ही किसी विशेषज्ञ के परामर्श से इंसुलिन का प्रारंभ करना चाहिए।
बच्चों में शुगर की मात्रा नियंत्रित न रहने से बहुत ही कम उम्र में अनेक प्रकार के दुष्प्रभाव होते हैं। जैसे-अंधा हो जाना, किडनी फेल हो जाना, आदि लक्षण दिखाई देते हैं और फिर अकाले मृत्यु हो जाती है। इसलिए संतुलित आहार, नियमित व्यायाम तथा इंसुलिन द्वारा रक्त सर्करा को कंट्रोल में रखना बहुत ही आवश्यक है।
इस प्रकार के ग्रसित रोगियों में बार-बार हाइपोग्लाइसिमिया अर्थात कम ब्लड शुगर होना भी दिखाई देता है। रक्त में चीनी की मात्रा कम हो जाना अत्यंत दु:खद है और जानलेवा भी हो सकता है।