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कल्पना और सृजन - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
कल्पना और सृजन

कल्पना और सृजन

सच क्या है

शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। कल्पना की दुनिया विशाल और अनंत है। दुनिया में जितने भी आविष्कार हुए हैं सभी कल्पना शक्ति की ही देन हैं। सबसे पहले सृजन का विचार मन में आता है और मन, बुद्धि बल के सहयोग से उसे कल्पना के रूप में आकार देता है। बिना कल्पना किए सृजन संभव नहीं है। वर्तमान में साइंस के साधन और भौतिकता की तमाम चीजें कल्पना शक्ति का ही परिणाम हैं। जिसकी कल्पनाशक्ति जितनी वृहद और व्यापक होती है वह उस क्षेत्र में विलक्षण, अद्वितीय प्रतिभा का धनी होता है। लेखक, कवि, गायक, चित्रकार, वैज्ञानिक की कल्पना शक्ति और सृजनशीलता ही उसे महान बनाती है। यह विधाएं कल्पना से जुड़ी हुई हैं। मन में उत्पन्न होने वाले सकारात्मक या नकारात्मक विचारों के आधार पर ही हमारे जीवन की क्वालिटी निर्भर करती है। यह मायने नहीं रखता है कि हम आज क्या हैं, मायने यह रखता है कि हम अपने प्रति, जीवन के प्रति, परिवार और समाज के प्रति कैसी कल्पना करते हैं और बनाए हुए हैं।

जीवन के प्रतत हो सकारात्मक दृतटिकोण…
हम समाज में देखते हैं कि कुछ लोग जीवनभर अपनी परेशानी का रोना रोते रहते हैं। भले वह आर्थिक, शारीरिक रूप से शक्ति संंपन्न हों लेकिन उनके मन में हमेशा ग्लानि, हीनता, कमजोरी और परेशानी के विचार होते हैं। उन्हीं विचारों के चलते वह सर्व समर्थ होने के बाद भी सदा चिंतित बने रहते हैं। इसमें उनकी कल्पनाशक्ति के नकारात्मक दिशा में करने के चलते होता है। दरअसल वह खुद की छवि को ही नकारात्मक बनाकर रखते हैं। फिर उसी छवि के कारण सबकुछ होने के बाद भी उन्हें परेशानी नजर आती है। वहीं दूसरे वह लोग भी होते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर होने के बाद भी रहन-सहन, विचार महान और समृद्ध लोगों की तरह होते हैं। क्योंकि उन्होंने अपने मन में कल्पना शक्ति को सकारात्मक दिशा में लगाया होता है। वह सदा आशावादी रहते हैं और संतुष्टता का भाव रखते हैं। जो मिला है उसे ईश्वर की अमानत समझकर चलते हैं। कल्पना शक्ति ददलाएगी मनचाही सफलता… यदि आपसे कहा जाए कि नींबू के स्वाद की कल्पना कीजिए तो एक पल में नींबू का खट्टापन महसूस हो जाता है, क्योंकि हमने उसका स्वाद चखा है। मन में नींबू की छवि उत्पन्न हो जाती है। इसी तरह हम खुद को जिस क्षेत्र में सफल व्यक्ति के रूप में देखना चाहते हैं उसकी रोज, प्रतिपल कल्पना करें। खुद को उस मुकाम पर देखें और वैसा ही महसूस करें। परमात्मा पिता, प्रकृति, परिवार और समाज के प्रति आभारी रहें। मुझे सफल बनाने में आपके अमूल्य सहयोग का धन्यवाद। आप देखेंगे कि कुछ ही दिनों में आप वैसे बनने लगेंगे। क्योंकि आपने अपनी कल्पनाशक्ति और बुद्धि बल से अंतर्मन में उस छवि को बिठा लिया है। यही छवि आपको सफलता के मुकाम पर ले जाएगी। यह कल्पना आपकी योगी-तपस्वी बनने की हो सकती है, उद्योगपति, आईएएस या कुछ और। जरूरत है तो कल्पनाशक्ति के सही और समुचित उपयोग करने की। यदि हम अच्छा बनने, जीवन में कुछ नया करने की मन में कल्पना ही नहीं करेंगे तो उसे पूरा करने का भी नहीं सोचेंगे। ऐसा क्यों होता है कि एक बेटा अपनी मां से कोसों दूर होता है जब कभी वह किसी परेशानी में होता है तो मां को आभास हो जाता है। क्योंकि मां की अपने बेटे के प्रति सदा शुभ और कल्याण की भावना होने से बेटे के बाइव्रेशन, उसकी सोच मां की कल्पनाशक्ति के आधार पर महसूस हो जाती है। प्रकृति के बीच रहने, जीवन के प्रति सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण रखने, रोज अच्छा साहित्य पढ़ने और ध्यान से कल्पनाशक्ति का सकारात्मक दिशा में विकसित किया जा सकता है।

अध्यात्म का ताना-बाना कल्पनाशीलता पर आधारित…
अध्यात्म का ताना-बाना कल्पनाशीलता पर ही आधारित है। आप अपने ज्ञान, अनुभव और बुद्धि बल के आधार पर कैसा महसूस करते हैं यह तय करता है कि आप अध्यात्म की किस अवस्था में हैं। वैज्ञानिकों ने भी माना है कि ध्यान की अवस्था में सबसे ज्यादा कल्पना शक्ति का विकास होता है। इसमें राजयोग मेडिटेशन अहम भूमिका निभाता है। राजयोग मेडिटेशन में हम मन में श्रेष्ठ और महान विचारों की कल्पना करते हैं और उन्हें बुद्धि बल से आकार देते हैं। साथ ही वैसा ही महसूस करते हैं जैसा कि हमने अपनी कल्पना में उन महान विचारों को जन्म दिया था। जब यह अभ्यास लंबे काल का हो जाता है तो हमारी कल्पना, शक्ति का रूप ले लेती है और व्यक्तित्व को उसी अनुरूप सृजित करने लगती है। यह पूरी प्रक्रिया के तहत होता है। क्योंकि जब तक मन में महान बनने के लिए महान विचार नहीं करेंगे, खुद की छवि को इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर महान रूप में नहीं देखेंगे तो महान कर्म के प्रयास भी नहीं करेंगे। वर्तमान में सृष्टि के महापरिवर्तन का यह संधि काल संगमयुग चल रहा है। परमपिता परमात्मा इस धरा पर अवतरित होकर सहज राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं। परमात्मा कहते हैं तुम मेरी संतान हो, मेरे लाडले, सिकीलधे बच्चे हो। सर्वशक्तिवान की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हो। भगवान हमें इतना ऊंचा और श्रेष्ठ स्वमान दिलाते हैं। यही कारण है कि परमात्म ऊर्जा, परमात्म शक्ति समाहित होने और राजयोग के सतत, नियमित अभ्यास से व्यक्तित्व में चार चांद लग जाते हैं। निखर जाता है, दिव्य बन जाता है क्योंकि राजयोगी का चिंतन सदा श्रेष्ठ और महान बनने की दिशा में अनवरत चलता रहता है। इसलिए राजयोग को राज पद दिलाना वाला योग भी कहते हैं क्योंकि आत्मा निखरकर देव स्वरूप बन जाती है।

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