- शिव बाबा ने हमें सारा ज्ञान दे दिया है, अब इसे प्रैक्टिकल में लाना है
लौकिक में भी हर सम्बन्ध में चाहे कलियुग के अन्त में, स्वार्थ वश सभी सम्बंध बन्धन बन गये हैं, फिर भी उनमें अल्पकाल का सुख समाया हुआ है। परन्तु यहां तो बेहद के बाप से अर्थात् भगवान परमपिता परमात्मा से सर्व सम्बन्धों का अनुभव करना है अर्थात् अतिन्द्रिय सुख का अनुभव करना है। यह अनुभव इस दुनिया से न्यारा और सबसे प्यारा है। इसलिए इस दुनिया से अर्थात् इस देह की कर्मन्द्रियों से न्यारा होकर ही हम बेहद के बाप से बेहद का सम्बन्ध निभा, बेहद का प्यार और सुख अनुभव कर सकते हैं। आपने पूरे कल्प इस देह में रहने के कारण देह के सम्बन्धों में ही अपनी मन-बुद्धि लगाई है। अब जबकि शिवबाबा ने आकर आपको सारा ज्ञान दिया है तो अपनी मन-बुद्धि इस देह से अर्थात् देह की कर्मन्द्रियों और देह के संसार से निकालनी पड़ेंगी क्योंकि यह अल्प से भी अल्पकाल का सुख, बेहद का सुख प्राप्त करने नहीं देगा। जब तक मन-बुद्धि देह में फँसी हुई है तब तक हम सदा के लिए इस परमात्म सुख का अनुभव नहीं कर सकते। इसलिए बाबा बार-बार कहता है बच्चे न्यारे बनो क्योंकि यह कुछ ही समय का न्यारापन बाप का प्यारा बना देगा और साथ ही साथ आप अपने पूरे कल्प का ऊँचा भाग्य भी बना लेते हो। फिर तो यह पुरानी दुनिया का त्याग नहीं बल्कि अपना ऊँचा भाग्य बनाने की युक्ति है। यदि अभी भी आपकी मन-बुद्धि इस पुरानी देह वा देह की दुनिया में थोड़ी-सी भी फंसी रही, तो आप परमात्म प्यार का सम्पूर्ण अनुभव नहीं कर पाओगे। फिर बताओ, बाप को पहचाना, ज्ञान को अच्छी तरह समझा और यथा शक्ति धारणा भी की और खूब सेवा भी परन्तु परमात्म प्यार को अनुभव नहीं किया, तो क्या किया? इसलिए परमात्मा की याद के साथ-साथ बाबा से मीठी-मीठी रूह-रिहान करो। इस देह की दुनिया से अलग हो अपने ऑरिजिनल स्वरूप अर्थात् अपने गुणों और शक्तियों से भरपूर स्वरूप को अनुभव कर बाप से मिलन मनाओ अर्थात् शिव बाप से सर्व सम्बन्ध निभाओ। जब सम्बन्धों का थोड़ा भी अनुभव होना शुरू होगा तो जल्दी ही बाप-समान बन जाओगे। इसलिए हर पल बाप को संग रखो, उनसे प्रेम भरी मीठी-मीठी रूह-रिहान करो अर्थात् परमात्मा के साथ का अनुभव करो। परमात्मा के साथ का अनुभव बहुत मीठा और बहुत प्यारा है। बस इसके लिए इस देह में रहते हुए भी इससे अपनी मन-बुद्धि निकालते जाओ क्योंकि इस दुनिया में किसी भी तरह की कोई प्राप्ति नहीं रही। इस दुनिया से सम्बन्धित हर प्राप्ति के पीछे दु:ख समाया हुआ है। यह दु:ख बढ़े, इससे पहले इससे निकल परमात्म प्यार में समा जाओ। यह समय कल्प में केवल एक ही बार मिलता है, जिसमें प्राप्तियां अपरमअपार है। बस बच्चे, अब अपने संकल्पों और समय को सफल करो। देखो, रात से दिन होने में केवल एक सेकण्ड ही लगता है, उस सेकण्ड की वैल्यू को समझों। यह ना हो आप समय का इंतज़ार करो और वह सेकण्ड रात का अन्तिम सेकण्ड हो। लौकिक में भी हर सम्बन्ध में चाहे कलियुग के अन्त में, स्वार्थ वश सभी सम्बन्ध बन्धन बन गये हैं, फिर भी उनमें अल्पकाल का सुख समाया हुआ है। परन्तु यहाँ तो बेहद के बाप से अर्थात्भ गवान परमपिता परमात्मा से सर्व सम्बन्धों का अनुभव करना है अर्थात् अतिन्द्रिय सुख का अनुभव करना है।यह अनुभव इस दुनिया से न्यारा और सबसे प्यारा है। इसलिए इस दुनिया से अर्थात्इ स देह की कर्मन्द्रियों से न्यारा होकर ही हम बेहद के बाप से बेहद का सम्बन्ध निभा, बेहद का प्यार और सुख अनुभव कर सकते हैं। आपने पूरे कल्प इस देह में रहने के कारण देह के सम्बन्धों में ही अपनी मन-बुद्धि लगाई है। अब जबकि शिवबाबा ने आकर आपको सारा ज्ञान दिया है तो अपनी मन-बुद्धि इस देह से अर्थात् देह की कर्मन्द्रियों और देह के संसार से निकालनी पड़ेंगी क्योंकि यह अल्प से भी अल्पकाल का सुख, बेहद का सुख प्राप्त करने नहीं देगा।