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सृष्टि रूपी नाटक के चार पट……. - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
सृष्टि रूपी नाटक के चार पट…….

सृष्टि रूपी नाटक के चार पट…….

सच क्या है

सामने दिए गए चित्र में दिखाया गया है कि स्वस्तिक सृष्टि- चक्र को चार बराबर भागो में बांटता है — सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग |

सृष्टि नाटक में हर एक आत्मा का एक निश्चित समय पर परमधाम से इस सृष्टि रूपी नाटक के मंच पर आती है | सबसे पहले सतयुग और त्रेतायुग के सुन्दर दृश्य सामने आते है | और इन दो युगों की सम्पूर्ण सुखपूर्ण सृष्टि में पृथ्वी-मंच पर एक “अदि सनातन देवी देवता धर्म वंश” की ही मनुष्यात्माओ का पार्ट होता है | और अन्य सभी धर्म-वंशो की आत्माए परमधाम में होती है | अत: इन दो युगों में केवल इन्ही दो वंशो की ही मनुष्यात्माये अपनी-अपनी पवित्रता की स्तागे के अनुसार नम्बरवार आती है इसलिए, इन दो युगों में सभी अद्वेत पुर निर्वैर स्वभाव वाले होते है |

द्वापरयुग में इसी धर्म की रजोगुणी अवस्था हो जाने से इब्राहीम द्वारा इस्लाम धर्म-वंश की, बुद्ध द्वारा बौद्ध-धर्म वंश की और ईसा द्वारा ईसाई धर्म की स्थापना होती है | अत: इन चार मुख्य धर्म वंशो के पिता ही संसार के मुख्य एक्टर्स  है और इन चार धर्म के शास्त्र ही मुख्य शास्त्र है इसके अतिरिक्त, सन्यास धर्म के स्थापक नानक भी इस विश्व नाटक के मुख्य एक्टरो में से है | परन्तु फिर भी मुख्य रूप में पहले बताये गए चार धर्मो पर ही सारा विश्व नाटक आधारित है इस अनेक मत-मतान्तरो के कारण द्वापर युग तथा कलियुग की सृष्टि में द्वेत, लड़ाई झगडा तथा दुःख होता है |

कलियुग के अंत में, जब धर्म की आती ग्लानी हो जाती है, अर्थात विश्व का सबसे पहला ” अदि सनातन देवी देवता धर्म” बहुत क्षीण हो जाता है और मनुष्य अत्यंत पतित हो जाते है, तब इस सृष्टि के रचयिता तथा निर्देशक परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के तन में स्वयं अवतरित होते है I वे प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मुख-वंशी  कन्या –” ब्रह्माकुमारी सरस्वती ” तथा अन्य ब्राह्मणों तथा ब्रह्मानियो को रचते है और उन द्वारा पुन: सभी को अलौकिक माता-पिता के रूप में मिलते है तथा ज्ञान द्वारा उनकी मार्ग-प्रदर्शना करते है और उन्हें मुक्ति तथा जीवनमुक्ति का ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार देते है I अत: प्रजपिता बह्मा तथा जगदम्बा सरस्वती, जिन्हें ही “एडम”  अथवा “इव” अथवा “आदम और हव्वा” भी कहा जाता है इस सृष्टि नाटक के नायक और नायिका है I क्योंकि इन्ही द्वारा स्वयं परमपिता परमात्मा शिव पृथ्वी पर स्वर्ग स्थापन करते है कलियुग के अंत और सतयुग के आरंभ का यह छोटा सा संगम, अर्थात संगमयुग, जब परमात्मा अवतरित होते है, बहुत ही महत्वपूर्ण है I

विश्व के इतिहास और भूगोल की पुनरावृत्ति

चित्र में यह भी दिखाया गया है कि कलियुग के अंत में परमपिता परमात्मा शिव जब महादेव शंकर के द्वारा सृष्टि का महाविनाश करते है तब लगभग सभी आत्मा रूपी एक्टर अपने प्यारे देश, अर्थात मुक्तिधाम को वापस लौट जाते है और फिर सतयुग के आरंभ से “अदि सनातन देवी देवता धर्म” कि मुख्य मनुष्यात्माये इस सृष्टि-मंच पर आना शुरू कर देती है | फिर २५०० वर्ष के बाद, द्वापरयुग के प्रारंभ से इब्राहीम के इस्लाम घराने की आत्माए, फिर बौद्ध धर्म वंश की आत्माए, फिर ईसाई धर्म वंश की आत्माए अपने-अपने समय पर सृष्टि-मंच पर फिर आकर अपना-अपन अनादि-निश्चित पार्ट बजाते है | और अपनी स्वर्णिम, रजत, ताम्र और लोह, चारो अवस्थाओ को पर करती है इस प्रकार, यह अनादि निश्चित सृष्टि-नाटक अनादि काल से हर ५००० वर्ष के बाद हुबहू पुनरावृत्त होता ही रहता है |

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