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अध्यात्मिक शिक्षा एक संस्कार है जो परिवार की संस्कृति बनाता है - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
अध्यात्मिक शिक्षा एक संस्कार है जो परिवार की संस्कृति बनाता है

अध्यात्मिक शिक्षा एक संस्कार है जो परिवार की संस्कृति बनाता है

जीवन-प्रबंधन

शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। हम ज्ञान की बहुत गहराईयों को चात्रक होकर अपने अन्दर भरते जा रहे हैं। जब हम शिक्षा शब्द सुनते हैं तो हमें लगता है ये तो स्कूल-कॉलेज के बच्चों के लिए है। लेकिन जो अध्यात्मिक शिक्षा है वो किसके लिए है? अध्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकता केवल बच्चों को ही नहीं अपितु उनके माता-पिता और शिक्षकों को भी है। अध्यात्मिक शिक्षा एक संस्कार है जो परिवार की संस्कृति बनाता है और जब हर परिवार की संस्कृति बनेगी तब ही ये संसार अच्छा बनेगा। तीन शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं संस्कार, संस्कृति और संसार। हमारे विचार ही हमारी भावनाओं का निर्माण करते हैं और भावनाओं से हमारा मानसिक स्वास्थ्य बनता है। शरीर को ऊर्जा विचारों से मिलती है। जिस तरह की ऊर्जा हम शरीर को देंगे वैसा ही हमारा स्वास्थ्य बनेगा। अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छे खान-पान, व्यायाम और नींद के साथ-साथ शुद्ध विचार भी आवश्यक हैं। शुद्ध विचारों से ही वायुमंडल व प्रकृति शुद्ध बनती है। राजयोग से विचार बनते हैं शुद्धराजयोग के अभ्यास से ही हम अपने विचारों को शुद्ध बना सकते हैं। इसके लिए हमें प्रतिदिन अपनी दिनचर्या से समय निकालकर राजयोग का अभ्यास करना बहुत जरूरी है। राजयोग से हमारे मन को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है जो हमारे चारों ओर फैलती है। विचारों की सकारात्मकता ही हमारे आपसी संबंधों को मधुर बनाती है। विचारों की गति प्रकाश व आवाज से भी तीव्र होती है। हमारे विचारों का संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि आज के समय में संबंधों को निभाने में हमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है। संबंध बोल, कर्म या व्यवहार से नहीं अपितु हमारे एक-दूसरे के प्रति विचारों से बनते हैं। यदि हम विचारों को श्रेष्ठ बना लेते हैं तो रिश्तों में मिठास स्वत: ही आ जाएगी।

मनोस्थिति के आधार पर ही बनता है घर का वायुमंडल

परिवार में रहने वाले सदस्यों की मनोस्थिति के आधार पर ही घर का वायुमंडल बनता है। घर बड़ा और सुंदर बनाने के लिए
घर का वायुमंडल भी सुंदर बनाने की आवश्यकता है कि बाहर से कोई परेशान व्यक्ति अंदर आए उसके मन को शांति की अनुभूति हो। जैसे मंदिर का विवरण दिव्य अलौकिक है वैसे ही हमारे घर का विवरण भी दिव्य अलौकिक बन जाए। घर एक मंदिर ये कहावत वास्तविकता बन जाए। नई पीढ़ी को संपन्न बनाने के मूल्यों से भी संपन्न बनाने की आवश्यकता है। अध्यात्मिकिा हमें सिखाती है कि संस्कार से ही संसार का निर्माण होता है। संसार को श्रेष्ठ बनाने के लिए आत्मिक जागृति बहुत आवश्यक है। अध्यात्मिक शिक्षा से ही आत्मिक जागृति संभव है। दिनभर जो हम देखते हैं, पढ़ते हैं अथवा सुनते हैं वैसे ही हमारे विचार बनते हैं। ध्यान रहे कि मोबाइल या टीवी के माध्यम से कु छ भी ऐसा ना देखें जो हमारे विचारों को दूषित करे। हमारे विचार ही हमारे भाग्य की नींव रखते हैं। ऐसी कोई भी सामग्री जिसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार समाया हो उसका परहेज करना है। ये पांचों विकार हमारी आत्मा की शक्ति को क्षीण करते हैं। कोई भी चित्र, गाना, मूवी या नाटक जिसमें ये विकार भरपूर हैं यदि हम हर रोज इनको देखते हैं तो हमारे संस्कार भी वैसे ही बन जाते हैं। इन सबसे बचने का एकमात्र उपाय अध्यात्मिक शिक्षा ही है। जब हम आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलते हैं तो हमारे अंदर खुशी, पवित्रता, प्यार, आनंद, करूणा आदि गुण समाने लगते हैं। आज भौतिक युग में धन कमाना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य बन गया है लेकिन सच्ची खुशी और मन की शांति नहीं। आधुनिक शिक्षा हमें सिर्फ धन कमाना सीखा सकती है जबकि अध्यात्मिक शिक्षा हमें धन
कमाने की सही विधि सिखाती है।

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