वन में कई बार लोगों को अनावश्यक दु:खों का चक्र लग जाने से उन्हें लगता है कि ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही क्यों हो रहा है? और सब तो मेरे से बेहतर सुखी हैं। भगवान ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया। मैंने किसका क्या बिगाड़ा जो लोग मेरे पीछे इस कदर पडक़र मुझे पीछे कर गिराने में लगे हुए हैं। ऐसी ही कुछ घटनाएं बॉलीवुड अभिनेता विवेक ओबेरॉय के साथ भी हुईं। इससे वह बेहद दु:खी और परेशान रहते थे। आइए, जानते हैं उनका फिल्मी कॅरियर और जीवन के कुछ खास प्रेरणादायी अनुभव जो उन्होंने शिव आमंत्रण से खास बातचीत के दौरान सांझा किए…….
शिव आमंत्रण,आबू रोड। बॉलीवुड अभिनेता विवेक ओबेरॉय का जन्म 3 सितंबर 1976 को हैदराबाद में हुआ। पिता सुरेश ओबेरॉय प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता हैं जो वर्तमान में ब्रह्माकुमारीज़ से भी जुड़े हुए हैं। उनकी मां का नाम यशोधरा है। विवेक का पूरा नाम विवेकानंद ओबेरॉय है। उनका नाम स्वामी विवेकानंद के नाम पर रखा गया था। उनके पिता और दादा, स्वामी विवेकानंद के अनुयायी थे। विवेक कहते हैं कि उन्होंने अपने नाम से आनंद को फिल्मों में आने से पहले इसीलिए हटा लिया क्योंकि विवेकानंद के नाम के साथ पर्दे पर रोमांस करना और नृत्य करना स्वामी विवेकानंद के नाम को शर्मसार करने के बराबर होता।
विवेक का फिल्मी कॅरियर
वर्ष 2002 में विवेक ने रामगोपाल वर्मा की फिल्म कंपनी से अपने कॅरियर की शुरुआत की। इसके बाद एक्शन फिल्म ‘सडक़’ और ‘दम’ में अभिनय किया। इसके बाद शाद अली द्वारा निर्देशित ‘साथिया’ में अभिनय किया। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही। उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था।
वर्ष २००४ में फिल्म मस्ती, युवा तथा कृष्णा में शीर्षक चरित्र द वारियर पोएट में अभिनय किया है। वर्ष 2006 में ओमकारा, 2007 में शूटआउट एट लोखंडवाला, 2008 में मिशन इस्तांबुल में अभिनय किया, जो अपूर्व लाखिया द्वारा निर्देशित और एकता कपूर द्वारा निर्मित थी। 2008 के इंडियन एकेडमी अवाड्र्स में, विकास कोहली द्वारा निर्मित “अपुन के साथ” गीत के लिए प्रदर्शन दिया। विवेक ने वर्ष 2009 में फिल्म कुर्बान में सहायक अभिनेता की भूमिका निभाई और 2010 में वह प्रिंस में दिखाई दिए। 2011 में वॉच इंडियन सर्कस फिल्म बनाई। वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बायोपिक में नरेन्द्र मोदी की किरदार को निभाया।
समाज के लिए परोपकारी सेवा
2006 में सुनामी से बुरी तरह प्रभावित हुए एक गांव को फिर से बनाने में मदद करने के लिए विवेक को रेड एंड व्हाइट ब्रवेरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। विवेक चेन्नई में जब थे तब आपदा राहत सामग्री के छह ट्रक तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले में एक सुनामी से तबाह हुए गांव को भेजे, फिर उस गांव को गोद लिया। ओबेरॉय और उनके परिवार ने यशोधरा ओबेरॉय फाउंडेशन की स्थापना की।
वे विश्व स्वास्थ्य संगठन के तंबाकू विरोधी प्रवक्ता के रूप में कार्य करते हैं। वह चेन्नई और मुंबई में कई चैरिटी से जुड़े हैं। 2004 के सुनामी के पीडि़तों को राहत पहुंचाने के लिए प्रोजेक्ट होप के साथ उनके काम ने उन्हें रोटरी इंटरनेशनल से एक अच्छा पुरस्कार दिया। उन्होंने प्रोजेक्ट देवी, कैंसर पेशेंट्स एड एसोसिएशन जैसी कई परोपकारी कार्य किए। जो मानसिक रूप से विक्षिप्त बेघर महिलाओं के पुनर्वास के लिए काम करती हैं। उन्होंने लगभग 3 मिलियन की सहायता की और 25 मिलियन जुटाए भी थे।
डर से पूरी एनर्जी निगेटिव होने लगती है
विवेक कहते हैं कि जीवन का एक एक्सपीरियंस को शेयर करना चाहता हूं जिससे लोगों को शायद सकारात्मक पे्ररणा मिले। एक बहुत बड़ा कठिन समय मेरे कॅरियर को लेकर था। जब मैं अपने कॅरियर को लेकर काफी इनसिक्योर हो गया था कि भविष्य का क्या होगा? क्या होने वाला है? मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है? यह लोग ही मेरे पीछे क्यों पड़े हैं? मैं जब अपनी मां और पिताजी से इसके बारे में बात कर रहा था तब मुझे याद है कि दोनों ने मुझे एक बहुत बड़ी बात कही कि जब तुम अवार्ड जीत रहे थे जब तुम और तुम्हारी फिल्में सुपरहिट हो रही थी तब तो तुमने कभी नहीं पूछा कि ऐसा मेरे साथ क्यों? जब चीजें नहीं चली या फिल्म फेल हो गई या कोई पर्सनल इश्यूज हो रहे हैं तो पूछते हो मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? तब मुझे लगा कि मेरा ध्यान निगेटिव थॉट के प्रति ज्यादा है। इनसिक्योरिटी और डर तो मेरा है। मैंने महसूस किया कि जब हम डर में रहते हैं तो हमारी पूरी एनर्जी निगेटिव हो जाती है।
मेरी प्रॉब्लम तो बहुत ही छोटी है
तब मेरे अंदर कुछ अचानक श्रेष्ठ विचार आया कि मैं कितना भाग्यशाली हूं। परमात्मा ने मुझे बहुतों की सहायता करने वाला बनाया है। जैसा कि मैं एक्टर भी हूं, हीरो हूं और मैं यहां पहुंचा हूं किसी और की मदद के लिए। इतनी दर्द में जो यह बच्चे कैंसर की पीड़ा को झेलते हुए मुस्कुरा भी रहे हैं। तब मैं अपने उस दर्द को भूलकर उसे देख कर अचरज से सोचा कि ईश्वर ने मुझे कितनी सुंदर जीवन गिफ्ट दी है। अब तो मैं लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का काम कर सकता हूं। जबकि पहले मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरी प्रॉब्लम दुनिया में सबसे बड़ी है। लेकिन अब मुझे समझ आ रहा है कि इन बच्चों के सामने मेरी प्रॉब्लम कितनी छोटी है।
पावरफुल आत्मा ही मुस्कुरा सकती है
उन बच्चों का अस्पताल में रहने का डर, अपने बाल खोने का डर, क्योंकि कैंसर में बच्चों के सारे बाल गिर जाते हैं। यह सब झेलते हुए सिर्फ मुस्कुराहट लाकर, सकारात्मक सोच कर हर दु:ख को झेलते रहना, यह बिल्कुल शांतचित्त और पावरफुल आत्मा ही कर सकती है। मुझे लगता है इसके लिए जीवन में हमें मेडिटेशन हो, भक्ति या कोई भी अच्छे कर्म टेक्नीक को जीवन में अपनाकर खुश रहा जा सकता है। अब मुझे किसी तरह का डर होता तो मैं परमात्मा और उन बच्चों को याद कर संपूर्ण विश्वास रखता हूं कि यह सब चीजों से मैं निकल जाऊंगा। सब कुछ ठीक हो जाएगा। अब मैं रोजाना राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास करता हूं। मेरा परमात्मा में बहुत यकीन है। रोजाना उन्हें याद कर उनसे बातें करता हूं। मानसिक स्वास्थ्य के लिए मेडिटेशन बहुत जरूरी है। आप सब भी इसे आजमाएं। ओम शांति।
एक ही पल में बदल गया मेरी नजरिया… जैसा कि आज भी लोगों को हो सकता है हो भी रहा है। जैसे मेरी नौकरी रहेगी कि नहीं रहेगी? क्या होगा मेरे साथ? लॉस तो नहीं हो जाएगा? इस वक्त वर्तमान में भी बहुत सारे लोग बहुत नेगेटिव मोड अथवा फीयरफुल मोड में जी रहे हैं। लेकिन जब मैं उस दौर से गुजर रहा था तब मेरी मां और पिताजी मुझे सलाह दे रहे थे, तब मुझे ऐसा लगा था कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं। फिर भी मां ने मुझे काफी प्रोत्साहित किया क्योंकि मेरी मां पिछले 35 साल से लोगों के बीच समाज सेवा करती रहीं हैं। वह मुझे अपने साथ कैंसर हॉस्पिटल ले गईं और जब मैं टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल गया तो चिल्ड्रन कैंसर वार्ड में पहुंचकर मेरा पूरा दृष्टिकोण और नजरिया बिना कुछ कहे, बिना कुछ दिखाए, बिना कुछ सिखाए, एक ही पल में बदल गया। इसके लिए मैं अपनी मां का बहुत ही शुक्रगुजार हूं।