- ब्रह्माकुमारीज़ की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती का 60वां पुण्य स्मृति दिवस मनाया
- पुष्पांजली अर्पित कर उनके सेवा कार्यों और जीवन चरित्रों को किया याद
शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। मम्मा बहुत आज्ञाकारी, ईमानदार, वफादार और फेथफुल थीं। वह हर बात में निश्चय बुद्धि थीं। वह सदा कहती थीं हुक्मू हुकम चला रहा है। उन्हें शिव बाबा पर पूर्ण निश्चय था। वह कभी किसी में अवगुण नहीं देखती थीं, सदा सभी में गुण ही देखती थीं। सदा सभी को आगे बढ़ाया। वह सदा कहती थीं कि जो कर्म मैं करुंगी, मुझे देखकर और करेंगे। इसलिए आप सभी के कर्म ऐसे दिव्य, श्रेष्ठ और महान हों कि आपको देखखर दूसरे भी उस राह पर चलने के लिए प्रेरित हो सकें। उनके सामने कैसी भी परिस्थति आई लेकिन वह कभी विचलित नहीं हुईं। मम्मा का योगी-तपस्वी जीवन आज भी हमारा मार्गदर्शन करता है।
उक्त उद्गार अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने व्यक्त किए। मौका था ब्रह्माकुमारीज़ की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) के 60वें पुण्य स्मृति दिवस पर मुख्यालय शांतिवन के डायमंड हाल में आयोजित श्रद्धांजली कार्यक्रम का। मम्मा की याद में ब्रह्ममुहूर्त से देर रात तक योग-तपस्या का दौर जारी रहा। वहीं शाम को भी कार्यक्रम में वरिष्ठ पदाधिकारियों ने मम्मा के साथ के अनुभव सांझा किए। बता दें कि 24 जून 1965 को आपने अपने नश्वर देह का त्याग करके संपूर्णता को प्राप्त किया था।
राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने कहा कि मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) ने सभी ब्रह्मा वत्सों की पालना बहुत ही प्यार से की। हम सभी को जीवन ऊंचा बनाने के लिए श्रेष्ठ धारणाएं सिखाईं। सभी को गाइड किया और ज्ञान का स्वरूप बनकर आदर्श प्रस्तुत किया। मैंने मम्मा को नहीं देखा लेकिन वरिष्ठ दादियों से मम्मा के बारे में सुना है कि उनका जीवन कितना तपस्वी और महान था। वह इस दुनिया में रहते हुए भी न्यारीं और प्यारीं रहती थीं। मम्मा बाबा की आज्ञाकारी, वफादार और फरमानदार थीं। उनके जीवन में सच्चाई और सफाई का विशेष गुण था। कठिन योग-साधना से स्वयं को इतना शक्तिशाली बना लिया था कि कैसा भी क्रोधी व्यक्ति उनके सामने आता था तो वह शांत हो जाता था। आप रात में 2 बजे से योग-साधना करती थीं। आपने सदा हां जी का पाठ पढ़ा।

1965 तक मुख्य प्रशासिका की निभाई जिम्मेदारी-अतिरिक्त महासचिव व मीडिया निदेशक बीके करुणा ने कहा कि जब पहली बार माउंट आबू में मम्मा को देखा और मिला तो उनके योगमय जीवन से बहुत प्रभावित हुआ। तब मैं 20 साल का था। उनका जादुई व्यक्तित्व अद्भुत था। मम्मा ने मुझसे कहा था कि यह बाबा का कल्प वाला बच्चा है। मम्मा को हर किसी की फ्रिक रहती थी। जैसे एक मां को अपने बच्चों की फ्रिक रहती है, वैसे ही मम्मा भी हर एक भाई-बहनों का ध्यान रखती थीं। रोज रात को वह सबकी क्लास लेती थीं और जिससे गलती होती थी तो उसे प्यार से समझाती थीं। संचालन बीके सुधीर भाई ने किया। समापन पर मम्मा की याद में भोग लगाया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।