- आत्मा बैटरी के समान है जिसे सुबह-सुबह चार्ज करना जरूरी है। सारे दिन में हम कुछ दूसरा सुन, पढ़, देखकर इसे भर देते हैं।
- जब भी हम परमात्मा को याद करें तो ये न कहें कि मेरा यह काम कर दो, बल्कि कहें कि मुझे यह काम करने की शक्ति दें।
जब तक हम यह महसूस नहीं करेंगे कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भावनात्मक स्वास्थ्य का कितना गहरा प्रभाव पड़ता है तब तक हम स्थिर नहीं रह सकते हैं।
शिव आमंत्रण/आबू रोड- यदि मैं बीमार हूं तो काम पर कौन जाएगा, फिर वहां काम क्या होगा ये दूसरी बात है। पहली बात यह है कि मैं ऑफिस जाऊंगी कैसे? इसलिए सारे दिन में मैं अपने शरीर का ध्यान जरूर रखती हूं। इसके लिए हमें शरीर को समय पर भोजन भी देना चाहिए। आप एक दिन भोजन छोड़ देंगे, दो दिन छोड़ देंगे, लेकिन कितने दिन तक छोड़ेंगे। मान लीजिए आप भागते-भागते भी खा रहे हैं और जंकफूड भी खा रहे हैं लेकिन आप खा तो लेते हो। चलो, आपने उपवास भी किया लेकिन कितने दिनों तक उपवास करेंगे? फिर उसके बाद आपको भोजन खाना ही पड़ेगा। क्योंकि आपको मालूम है कि ये चार दिन का जीवन नहीं है। यह तो एक लंबी यात्रा है। इस यात्रा में जीवित रहने के लिए और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भोजन जरूरी है। नहीं तो आपका जीवन खत्म हो जाएगा। यदि हमारा स्वास्थ्य अच्छा होगा, तभी हम ठीक तरह से काम कर पाएंगे। लेकिन कहीं न कहीं हमने भावनात्मक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य से अलग कर दिया है। अगर उसको भी हम जीवन में उतनी ही प्राथमिकता दें जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य को देते हैं तब हम जीवन की यात्रा में ठीक तरह से चल पाएंगे। एक है शारीरिक रूप से शक्तिहीन होना और एक है भावनात्मक रूप से शक्तिहीन होना। अब पांच मिनट पहले पता चला कि स्कूल छोडऩे जाना है, ठीक है। अगर मैं उस समय शांत रहूं, स्थिर रहूं, छोडऩे तो फिर भी जाना ही है, गाड़ी तो आपको फिर भी चलानी ही है। लेकिन गाड़ी हम किस स्थिति में चलाएंगे? दु:खी होकर? अगर हम भावनात्मक स्वास्थ्य को भी उतना ही महत्व दें कि ये सब परिस्थितियां और भावनात्मक स्वास्थ्य अलग- अलग नहीं है। यह तो एक प्रक्रिया है। यदि मैं भावनात्मक रूप से स्वस्थ हंू तो परिस्थितियों को बहुत ही सरलता से पार कर सकती हूं। पहले हम क्या करते हैं, परिस्थिति को संभालने के बारे में सोचते हैं जो बाद में भावनात्मक स्वास्थ्य के बारे में सोचते हैं।
हमने आत्मा का ध्यान ही नहीं रखा– अभी लोग शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में इतना क्यों सोच रहे हैं? क्यों इतना ध्यान रखा जा रहा है? इसके लिए हमें बहुत ज्यादा पीछे जाने की आवश्यकता नहीं है। हम सिर्फ एक पीढ़ी पीछे जाते हैं और सिर्फ अपने पैरेंट्स को देखते हैं। वे कभी व्यायाम करने नहीं गए, उन्होंने कभी मिनरल वाटर नहीं पीया, उस समय भोजन का इतना ध्यान नहीं रखा जाता था, हम लोगों के यहां साधारण भोजन बनता था उसे ही सभी लोग खुशी-खुशी खाते थे। आज हमारे स्वास्थ्य पर इतना ध्यान क्यों दिया जा रहा है? क्योंकि भावनात्मक दबाव इतना ज्यादा है कि कोई न कोई समस्या शरीर के साथ चलती ही रहती है। इसका कारण यह है कि हमने आत्मा का ध्यान ही नहीं रखा, उसके कारण ही सारी समस्याएं आनी शुरू हो जाती हैं। अगर हम आत्मा का भी ध्यान रखें तो मन पर जो इतना ज्यादा दबाव है, इसके लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
आप व्यायाम करने तो जा रहे हो, उसमें भी अगर दो-तीन लोग एक साथ व्यायाम कर रहे हैं उस समय आप स्वयं को जांचे करें कि हमारे सोच की गुणवत्ता क्या है? हम सेहत के लिए घूम रहे हैं लेकिन साथ-साथ नकारात्मक विचार उत्पन्न हो रहे हैं। इस थॉट्स (विचार) का असर सिर्फ हमारे मन पर ही नहीं बल्कि पूरे शरीर पर पड़ता है। जब तक हम यह महसूस नहीं करेंगे कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भावनात्मक स्वास्थ्य का कितना गहरा प्रभाव पड़ता है तब तक हम स्थिर नहीं रह सकते है।