- अव्यक्त आरोहण: 18 जनवरी 1969 (55वां पुण्य स्मृति दिवस) पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा बाबा, साकार संस्थापक, ब्रह्माकुमारीज़
शिव आमंत्रण,आबू रोड। (राजस्थान)। निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी… ब्रह्मा बाबा के ये तीन अंतिम शब्द थे। साधारण रहते हुए असाधारण कै से बन सकते हैं रह बाबा ने अपने जीवन से सिखाया है। कर्मों से दिव्यता और महानता का पाठ पढ़ाती आपकी व्यवस्थित दिनचर्या, प्रत्येक आत्मा के प्रति शुभ संकल्पों से भरपूर विराट सोच आपकी फरिश्ता स्थिति दिखाती थी। विपरीत परिस्थिति में सदा शांत मन, स्थिर बुद्धि, और मिठास से भरपूर व्यवहार आपके तपस्या को बया करता था। आपके व्यक्तित्व के बारे में
लिखना मतलब सूर्य को दीपक दिखाना है। फिर भी बाबा के व्यक्तित्व में से कुछ दिव्य गुणों के बारे में यहां चर्चा करेंगे-
निश्चय और निश्चिंत : ब्रह्मा बाबा को जब ज्योतिस्वरूप, परमपिता परमात्मा के दिव्य साक्षात्कार हुए तो उन्हें पलभर में यह अटूट निश्चय हो गया कि अब मुझे शिव बाबा के बताए अनुसार विश्व कल्याण और नवयुग की स्थापना के कार्य में आगे का जीवन जीना है। बिना देर किए उन्होंने सारा कारोबार समेटा और विश्व शांति की राह पर चल पड़े। लक्ष्य बड़ा था लेकिन एक बल, एक भरोसे के साथ विपरीत परिस्थिति में भी सदा निश्चिंत भाव से आगे बढ़ते रहे। मन में कभी रिचक मात्र भी संशय और प्रश्न नहीं आया।
संतुलन: बाबा की सुबह से लेकर रात तक की दिनचर्या एक आदर्श, महान और दिव्य व्यक्तित्व की निशानी थी। सोच से लेकर हर कर्म में उदाहररमूर्त बनकर बाबा ने बच्चों के सामने उदाहरण पेश किया। हर कार्य एक्यूरेट, परफेक्ट कैसे किया जा सकता है यह बात बाबा के एक-एक कर्म में दिखती थी। ज्ञानयाेग-सेवा-धारणा का अद्भुत संतुलन और समन्वय था।
एकांतप्रिय: बच्चों को गाइड करते, ज्ञान सुनाते भी सदा एकांतप्रिय रहते। सबके बीच रहते भी सदा अव्यक्त, विदेही, उपराम अवस्था रहती। कम बोलो, धीरे बोले, मीठा बोलो की मिसाल थे। अमृतवेला दो बजे से याेग करना और एकांत में रहना दिनचर्या में शामिल था।
साक्षीभाव: बाबा के समक्ष कितने विघ्न, परीक्षाएं आईं लेकिन सदा कहते थे बच्चे नथिग न्यू। बाबा ने प्रत्येक घटना और सीन को साक्षीभाव से देखा। कभी भी न खुद विचलित हुए और न ही बच्चों को विचलित होने दिया। बाबा कहते- ड्रामा का हर सीन
कल्याणकारी है। प्रैक्टिकल में हमें सिखाया कि सुख-दुख में भी सदा एकसमान, एकरस अवस्था को कैसे बनाए रख सकते हैं।
रॉयल और साधारण: बाबा का रहन-सहन खान-पान बहुत साधारण था। लेकिन उतना ही रॉरल भी। बच्चों को एक-एक कर्म से सिखाया कि उसे रॉयल कैसे कर सकते हैं। उनके संपर्क में आने वाली प्रत्येक आत्मा को दिव्यता और महानता की अनुभूति होती थी।
पवित्र विचार: कोई बच्चे में कितने भी अवगुण हो लेकिन बाबा ने सदा सभी में सद्गुण ही देखे। विचार इतने पवित्र, निर्मल थे कि सदा हर एक आत्मा के प्रति शुभभावना- शुभकामना, रहम भाव, कल्याण का भाव रखते हुए सदा श्रेष्ठ, महान चितन में ही रहते थे।
निमित्त भाव-निर्माण भाव: नई दुनिया के स्थापना के कार्य में युगपुरुष की भूमिका निभाने और परमात्मा के संदेशवाहक बनने के बाद भी बाबा खुद को निमित्त मात्र मानते थे। वह सदा कहते थे- करनकरावनहार करा रहा है। इतने विशाल व्यक्तित्व होने के बाद भी कभी अभिमान नहीं रहा। उन्होंने कभी स्त्री-पुरुष, अमीर गरीब, छोटा-बड़ा किसी में भेद नहीं किया। हमेशा बच्चों को आगे बढ़ाया। आपकी विराट सोच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खुद पीछे रहकर माताओं- बहनों को जिम्मेदारी सौंपी।
तपस्वी स्थिति: एक तपस्वी, याेगी आत्मा के सारे गुण आप में थे। कर्म करते भी सदा उपराम स्थिति, व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति, साधारणा में रहते असाधारणा कर्म आपके जीवन में था। दिन-रात शिव बाबा की याद में मग्न और याेगयुक्त अवस्था में रहते। बाबा का बीमारी में भी चेहरा सदा खुशनुमा और मुस्कुराता रहता। पिता की तरह समझाते, शिक्षक की तरह शिक्षा देते, गुरु के रूप में गाइड बनकर साथ देते। इस तरह पिता, शिक्षक, गुरु का संबंध तीनों रूप में बाबा ने बच्चों का साथ निभाया। और प्रश्न नहीं आया।
संतुलन: बाबा की सुबह से लेकर रात तक की दिनचर्या एक आदर्श, महान और दिव्य व्यक्तित्व की निशानी थी। सोच से लेकर हर कर्म में उदाहररमूर्त बनकर बाबा ने बच्चों के सामने उदाहरण पेश किया। हर कार्य एक्यूरेट, परफेक्ट कैसे किया जा सकता है यह बात बाबा के एक-एक कर्म में दिखती थी। ज्ञानयाेग-सेवा-धारणा का अद्भुत संतुलन और समन्वय था।