- नारी के शक्ति स्वरूप की महिमा को साकार कर रही है ब्रह्माकुमारीज़
- नारी शक्ति द्वारा संचालित विश्व का एकमात्र सबसे बड़ा संगठन
शिव आमंत्रण, आबू रोड। हर नारी चाहे तो मां दुर्गा के समान शक्ति रूप बन सकती है। जरूरत है तो उसे अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचान कर जगाने की। अपने शक्ति स्वरूप को जागृत करने की। प्रत्येक आत्मा अपने मूल स्वरूप में शक्ति स्वरूप है। लेकिन जन्म-मरण के चक्कर में आते-आते आत्मा अपना स्वधर्म भूल गई और आज देह अभियान के आवरण में खुद के शक्ति स्वरूप को विस्मृत कर दिया है। आत्मा के परमपिता सर्वशक्तिवान परमात्मा शिव से संबंध जोड़कर आत्मा रूपी बैटरी को चार्ज कर सकते हैं। परमात्मा इस धरा पर आकर यह विधि सिखा रहे हैं
शक्ति का आह्नान…
शक्ति, ऊर्जा, ताकत, बल। संपूर्ण ब्रह्मांड शक्ति (एनर्जी) से ही चल रहा है। जीवन को उच्च गुणवत्तापूर्ण जीने के लिए मुख्य पांच शक्तियों का संतुलन और समन्वय जरूरी है- शारीरिक शक्ति, मानसिक शक्ति, अर्थ शक्ति, आत्मिक शक्ति और परमात्म शक्ति। हम शारीरिक शक्ति और अर्थ शक्ति को पाने में इतने मशगूल हो गए हैं कि बाकी तीन शक्तियों को भुला बैठे हैं। कुछ लोग मानसिक शक्ति बढ़ाने का प्रयास करते हैं लेकिन जीवन के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण है, जिसके ऊपर नींव खड़ी है और आधार स्तंभ है- आत्मिक और परमात्म शक्ति, उसे बढ़़ाने, अर्जित करने, संभालने की ओर हमारा ध्यान नहीं है। जब हमें आत्मिक शक्ति की पहचान हो जाती है, उसे जागृत करने की विधि जान लेते हैं तो परमात्म शक्ति वरदान के रूप में स्वत: मिल जाती है। आत्मिक शक्ति, मानसिक शक्ति और परमात्म शक्ति का एक-दूसरे से गहरा संबंध है। जब जीवन में ये तीनों पक्ष अपने मूल स्वरूप को प्राप्त करते हैं तो अर्थ शक्ति हमें गॉड गिफ्ट के रूप में प्राप्त हो जाती है।
दिव्यता का आह्नान…
हर वर्ष नौ दिन शक्ति की भक्ति में हम व्रत के साथ नियम-संयम और पूरे मनोभाव व संकल्प से जागरण, तप-आराधना-ध्यान करते हैं। क्योंकि विधि से ही सिद्धी मिलती है। यहां खुद से सवाल करना जरूरी है कि यदि नवरात्र में नौ दिन आदि शक्ति की आराधना में नियम-संयम से चल सकते हैं तो जीवनभर क्यों नहीं? नौ दिन में मातारानी खुश हो सकती हैं तो यदि जीवन ही उनके समान दिव्यता संपन्न बना लें तो क्या उनका स्वरूप नहीं बन सकते? हम दैवी की महिमा में जगराते, आराधना करते, उनके गुणों और शक्तियों की महिमा गाते लेकिन इस बारे में भी विचार किया है कि क्या हम उनके समान अपने जीवन में दैवीगुण धारण नहीं कर सकते हैं? क्या हम भी उनकी तरह जीवन को शक्ति से परिपूर्ण नहीं बना सकते? क्या हमारा जीवन भी दैवी की तरह पवित्र नहीं हो सकता? क्या हम भी लेवता से देने वाले अर्थात् देव स्वरूप स्थिति को प्राप्त नहीं हो सकते? बचपन से मांगना हमारा संस्कार बन गया है। मुझे प्रेम चाहिए, स्नेह चाहिए, सम्मान चाहिए। इसकी जगह क्या हम देव स्वरूप स्थिति अर्थात् देने वाले, प्रेम स्वरूप अर्थात् प्रेम देने वाले, स्नेह स्वरूप अर्थात् स्नेह देने वाले। सम्मान देने वाले। जब जीवन में देने का भाव प्रकट होता है तो देवताई संस्कार अपने आप इमर्ज होने लगते हैं। क्योंकि देना ही लेना है। जब जीवन देवियों की तरह गुणवान और पवित्र बन जाता है तो शक्तियों का जागरण होने लगता है।
आखिर नवरात्र ही क्यों?
रात्रि अर्थात् अज्ञान, अंधकार, कालिमा, बुराइयां, आसुरीयता। नवरात्रि के साथ जुड़े ‘नव’ शब्द का अर्थ है नवीनता, नया, नई शुरुआत, शुद्ध-पवित्र। अंकों में इसे नौ भी कहते हैं। इसलिए नवरात्रि में नौ देवियों का गायन है। नवरात्रि अर्थात् अपने अंदर जो बुराइयां रूपी असुर और आसुरीयता घर कर गई है उसे नव संकल्प के साथ, नई शुरुआत के साथ जीवन में दिव्यता-पवित्रता का आह्नान करना। जगराता अर्थात् अपनी शक्तियों का जागरण करना। देवियों को आदि शक्ति, शिव शक्ति भी कहा जाता है। कालांतर में शक्तियों ने भी योगबल से शिव से शक्ति प्राप्त की थी, इसलिए इन्हें शिव शक्ति भी कहते हैं। श्रीमद्भागवत गीता में लिखा है कि ब्रह्मा की रात्रि, ब्रह्मा का दिन। सतयुग और त्रेतायुग है ब्रह्मा का दिन और द्वापर, कलयुग है ब्रह्मा की रात है। जब संसार में अज्ञानता की रात्रि छा जाती है तो ऐसे समय पर ही परमात्मा भी संसार में शक्तियों की उत्पत्ति करते हैं, जिससे अंधकार, अज्ञानता समाप्त हो जाती है और मनुष्य जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैल जाता है।