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आत्म अनुभूति से ही संभव है परमात्म अनुभूति: बीके शीलू दीदी - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
आत्म अनुभूति से ही संभव है परमात्म अनुभूति: बीके शीलू दीदी

आत्म अनुभूति से ही संभव है परमात्म अनुभूति: बीके शीलू दीदी

मुख्य समाचार

– राजयोग मेडिटेशन शिविर जारी, दो सत्रों में चल रहा है शिविर

शिव आमंत्रण,आबू रोड/राजस्थान। ब्रह्माकुमारीज संस्थान के शांतिवन परिसर में दो सत्रों में राजयोग मेडिटेशन शिविर का आयोजन जारी है। इसमें बड़े ही उत्साह के साथ लोग भाग ले रहे हैं। शिविर में खासतौर पर राजस्थान और मुंबई से बड़ी संख्या में लो पहुंचे हैं।
शिविर को संबोधित करते हुए वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके शीलू दीदी ने कहा कि आज प्रत्येक मनुष्य यही कहता है कि ईश्वर का ध्यान करते समय उसका मन भटकता रहता है या एकाग्र नहीं हो पाता है। इस तरह की शिकायत मनुष्य के साथ योग लगाने की बात में कभी नहीं होती है। कोई पत्नी यह शिकायत नहीं करेगी कि जब वह अपने पति को याद करती है तब उसका मन भटकता रहता है। कोई भी बच्चा यह कभी नहीं कहता है कि वह अपने पिता में अपना मन एकाग्र नहीं कर सकता है। तब फिर यह शिकायत परमात्मा के लिए क्यों है? एक तरफ तो परमात्मा को माता-पिता कहकर याद किया जाता है और उनके साथ सर्व सम्बन्धों का भी वर्णन किया जाता है – त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव, त्वमेव सर्वम मम देव-देव।। यह परमात्मा की ही महिमा में तो गाया जाता है, लेकिन दूसरी तरफ हम यह भी कहते हैं कि ईश्वर में हमारा मन नहीं लगता है। इसका मूल कारण यही है कि परमात्मा के साथ हमें अपने सम्बन्धों की पूरी अनुभूति नहीं है या कहें कि हमें परमात्मा के सम्बन्ध में कोई जानकारी ही नहीं है। परमात्मा कोई स्थूल वस्तु तो हैं नहीं जिसे चर्म-चक्षुओं से देखा जा सके या स्थूल इंद्रियों से अनुभव किया जा सके। चैतन्य परमात्मा का वास्तविक स्वरूप तो बुद्धि के द्वारा ही जाना अथवा अनुभव किया जा सकता है। परमात्मा की अनुभूति तो सिर्फ आत्म अनुभूति से ही संभव है।
परमात्मा ज्योतिर्बिंदु स्वरूप हैं-
डॉ. बीके सविता दीदी ने कहा कि जब तक हम स्वयं को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा को याद नहीं करेंगे तब तक हमें परमात्म अनुभूति नहीं हो सकती है। जैसे आत्मा का स्वरूप ज्योतिर्बिन्दु है वैसे ही परमात्मा भी ज्योतिबिन्दु स्वरूप है उन्हें इन नेत्रों से नहीं देखा जा सकता है। जब हम बिन्दु स्वरूप में स्थित होते हैं तब परमात्मा की याद स्वत: ही आने लगती है और आत्मा एक अलौकिक आनंद की अनुभूति में खो जाती है। इससे परमात्मा के गुण आत्मा में स्वत: ही समाने लगते हैं। परमात्म अनुभूति से आत्मा स्वयं को भरपूर अनुभव करने लगती है। इसी अवस्था को ऋषि-मुनियों ने योग की पराकाष्ठा एवं परमात्म मिलन कहा है। इस अवस्था के पश्चात ही आत्मा सम्पूर्णता की ओर बढऩे लगता है।

शिविर में उपस्थित राजस्थान व मुंबई से आए पांच हजार से अधिक लोग। 

गीता दीदी के अनुसार- परमात्मा की पहचान के पांच आधार
– जो सर्वमान्य हो: परमात्मा उसे कहा जाएगा जो सर्वमान्य हो, यानी जिसे सभी धर्मों की आत्माएं सहज ही स्वीकार करें, क्योंकि वह सर्व धर्मों की आत्माओं का परमपिता है। उसे अलग-अलग भाषाओं और धर्मों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि परमेश्वर, ईश्वर, ओंकार, अल्लाह, खुदा, गॉड, नूर इत्यादि परंतु वह है तो एक ही।
– जो सर्वोच्च हो: परमात्मा उसे कहा जाएगा जो सर्वोच्च, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम या परम हो यानी उसके ऊपर कोई हस्ती न हो। परमात्मा का कोई माता-पिता, शिक्षक, गुरु या रक्षक नहीं है, बल्कि वे ही सर्व आत्माओं के परमपिता, परम शिक्षक, परम सतगुरु और परम रक्षक हैं। इसलिए उसकी महिमा में गाया जाता है – ऊंचा तेरा नाम, ऊंचा तेरा धाम, ऊंचा तेरा हर काम, ऊंचे से ऊंचा भगवान। तो जिसका नाम, धाम, गुण और कर्तव्य सबसे ऊंचा है वही परमात्मा है।
– जो सबसे न्यारा हो: परमात्मा उसे कहेंगे जो सबसे न्यारा हो। परमात्मा जन्म-मरण, कर्म-फल, पाप-पुण्य, सुख-दु:ख के चक्करों में नहीं आते हैं। परमात्मा इस प्रकृति की परिवर्तन-क्रिया अर्थात् सतो-रजो-तमो से भी न्यारा है। वह सर्व प्राकृतिक बंधनों से मुक्त है। इसलिए वह सर्व से न्यारा और सर्व का प्यारा माना गया है। ईश्वर से ऊंचा तो कोई नहीं है परंतु उसके समान भी कोई नहीं है।
– जो सर्वज्ञ हो:  परमात्मा उसे कहेंगे जो सर्वज्ञ हो अर्थात् वह सबकुछ जानता हो। किसी भी संदर्भ में जब कोई बात व्यक्ति की समझ में नहीं आती है तो ईश्वर को याद कर अवश्य कहेगा, भगवान जाने या अल्लाह जाने अर्थात् परमात्मा से कोई भी बात अनभिज्ञ नहीं है क्योंकि वह सर्वज्ञ है।
– जो सर्व गुणों और शक्तियों का भंडार हो:  परमात्मा उसे कहेंगे जो सर्व गुणों और शक्तियों का भण्डार हो। परमात्मा कभी भी किसी से लेता नहीं है, परंतु सागर या सूर्य के समान अपने गुणों और शक्तियों को देता ही रहता है। उसी के लिए गाया गया है, देने वाला जब भी देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है।
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