ब्रह्माकुमारीज के मनमोहिनीवन परिसर में 87वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती महोत्सव के तहत किया गया शिव ध्वजारोहण
शिव आमंत्रण,आबू रोड/राजस्थान। ब्रह्माकुमारीज के मनमोहिनीवन परिसर में रविवार को 87वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती महोत्सव के तहत शिव ध्वजारोहण किया गया। कार्यक्रम में संस्थान की संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके मुन्नी दीदी ने कहा कि परमपिता शिव और शंकरजी में महान अंतर हैं। शिवजी और शंकरजी में वही अंतर है जो एक पिता-पुत्र में होता है। इस सृष्टि के विनाश कराने के निमित्त परमात्मा ने ही शंकरजी को रचा। यहीं नहीं ब्रह्मा, विष्णु, शंकरजी के रचनाकार, सर्वशक्तिमान, सर्वोच्च सत्ता, परमेश्वर शिव ही हैं। वह ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की स्थापना, शंकर द्वारा विनाश और विष्णु द्वारा पालना कराते हैं। शिवलिंग परमात्मा शिव की प्रतिमा है। परमात्मा निराकार ज्योति स्वरूप हंै। शिव का अर्थ है कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है चिंह्न। अर्थात् कल्याणकारी परमात्मा को साकार में पूजने के लिए शिवलिंग का निर्माण किया गया। शिवलिंग को काला इसलिए दिखाया गया क्योंकि अज्ञानता रूपी रात्रि में परमात्मा अवतरित होकर अज्ञान-अंधकार मिटाते हैं।
परमात्मा जन्ममरण से न्यारे हैं-
संस्थान के अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन ने कहा कि विश्व की सभी महान विभूतियों के जन्मोत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन परमात्मा शिव की जयंती को जन्मदिन न कहकर शिवरात्रि कहा जाता है, आखिर क्यों? इसका अर्थ है परमात्मा जन्ममरण से न्यारे हैं। उनका किसी महापुरुष या देवता की तरह शारीरिक जन्म नहीं होता है। वह अलौकिक जन्म लेकर अवतरित होते हैं। उनकी जयंती कत्र्तव्य वाचक रूप से मनाई जाती है। जब- जब इस सृष्टि पर पाप की अति, धर्म की ग्लानि होती है और पूरी दुनिया दु:खों से घिर जाती है तो गीता में किए अपने वायदे अनुसार परमात्मा इस धरा पर अवतरित होते हैं।
अब पुन: भाग्य बनाने का है मौका-
रशिया में ब्रह्माकुमारीज के सेवाकेंद्रों की निदेशिका बीक सुधा दीदी ने कहा कि परमपिता परमात्मा शिव 33 करोड़ देवी-देवताओं के भी महादेव एवं समस्त मनुष्यात्माओं के परमपिता हैं। सारी सृष्टि में परमात्मा को छोड़कर सभी देवी-देवताओं का जन्म होता है। जबकि परमात्मा का दिव्य अवतरण होता है। वे अजन्मा, अभोक्ता, अकर्ता और ब्रह्मलोक के निवासी हैं। शंकरजी का आकारी शरीर है। शंकरजी, परमात्मा शिव की रचना हैं। यही वजह है कि शंकर हमेशा शिवलिंग के सामने तपस्या करते हुए दिखाए जाते हैं। ध्यानमग्न शंकरजी की भाव-भंगिमाएं एक तपस्वी के अलंकारी रूप हैं। शंकर और शिव को एक समझ लेने के कारण हम परमात्म प्राप्तियों से वंचित रहे। अब पुन: अपना भाग्य बनाने का मौका है।
तीनों लोगों के स्वामी में शिव-
कार्यकारी सचिव बीके डॉ. मृत्युंजय ने कहा कि शिवलिंग पर तीन रेखाएं परमात्मा द्वारा रचे गए तीन देवताओं की ही प्रतीक हंै। परमात्मा शिव तीनों लोकों के स्वामी हैं। तीन पत्तों का बेलपत्र और तीन रेखाएं परमात्मा के ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी रचयिता होने का प्रतीक हैं। वे प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सतयुगी दैवी सृष्टि की स्थापना, विष्णु द्वारा पालना और शंकर द्वारा कलियुगी आसुरी सृष्टि का विनाश कराते हैं। इस सृष्टि के सारे संचालन में इन तीनों देवताओं का ही विशेष अहम योगदान है।
मधुर वाणी ग्रुप के कलाकारों ने गीत प्रस्तुत किया। छोटी कन्याओं ने नृत्य की प्रस्तुति दी। संचालन बीके शक्तिराज सिंह ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ राजयोगी बीके मोहन सिंघल, जयपुर से बीके पूनम दीदी, बीके शांता दीदी, बीके नीलू दीदी, बीके देव, बीके प्रकाश, पीआरओ बीके कोमल, बीके जीतू, बीके भानू, बीके संजय सहित बड़ी संख्या में भाई-बहनें मौजूद रहे।