हे भगवान, मेरा ये काम करो, मेरा वो काम करो, मुझे इस समस्या से मुक्त करो ऐसे प्रार्थना में कोई मूर्ती के सामने बैठ के हम बोलते रहते है लेकिन भगवान कैसा है, क्या है कितनों को पता है? बस एक भावना रहती है। लेकिन भगवान क्या है यह उनको ठीक रीति से मालूम न होते हुए भी वो अपना कार्य करता है, भावना का भाडा देता है। समझो, ऐसा उसने नही किया तो उसके उपर का विश्वास ही उड जायेगा। वैसे देखा जाय तो आत्मिक रूप से हम सब उस भगवान के ही बच्चे है। बच्चों का दुख उससे कैसे देखा जायेगा? लेकिन विकर्म या पापकर्म कुछ जादा ही है तो उसकी कुछ न कुछ भोगना तो भोगनी पडेगी ही… कारण इस दुनिया के भी कई कानून है। दुसरे का सुख छीन कर हम अपना आशियाना नही बना सकते, दुसरे का आजादी छीनकर हम स्वच्छंदता को आजादी नही कह सकते। अपने को सुख चाहिए तो दुसरे को अपने कारण कोई तकलीफ न हो यह देखना पडे, अपने जैसी आजादी बाकी लोगों की भी है तो अपनी आजादी मनमानी मे ना बदले, अपने कारण आसपास का माहोल खराब ना हो यह भी देखना पडे। कुदरत की तरफ देखेंगे, पांच तत्वों की तरफ देखेंगे, प्राणीमात्र की तरफ देखेंगे तो उनका भी एक कानून है, उसूल है। बिना वजह वह किसी को दुख नही देंगे। कोई हिंसक प्राणी भी है, शेर हो या चीता हो अपना पेट भरा होगा तो किसी की वो हिंसा नही करेंगे। विकार मे भी वह बिना वजह नही जायेंगे। लेकिन मानव एक ऐसा प्राणी है जिसने सब कायदे कानून तोड दिये है। काम-क्रोध-लोभ-मोह-अहंकार के कारण पंचतत्वों को भी हिला के रखा है। तो अलग अलग प्रकार से पांच तत्व अपना जलवा भी दिखा रहे है… सुनामी आती है, एड्स जैसी बीमारी आती है, भयानक एक्सिडेंटस होते है।
खुद इन्सान ही कोरोना जैसा वायरस छोडकर पुरी मानव प्रजाति नेस्तनाबूत करने के पीछे लगा हुआ है। जिओ और जीने दो यह सब धर्मों की सीख है पर वह सीख सीर्फ बताने के लिए रही हुई है। उलटा सत्य बोलकर कौन आगे आया है, किसका भला हुआ है यह बाते सुनने को मिलती है।
सांप्रत काल, जिसको हम भगवान बोलते है वह खुद इस धरती पर अवतरीत हुए है। वह है निराकार, लेकिन हर पांच हजार बरस मे एक बार इस दुनिया मे ब्रह्मा तन के आधार से अवतरीत होकर सत्य ज्ञान देते है, इस सृष्टि का स्वर्ग मे परिवर्तन करते है और फिर अपना निजधाम ब्रह्मांड मे जाकर स्थित होते है। इसके लिए उदाहरण के तौर पर एक बात हम ले सकते है कि स्कूल मे जो इतिहास पढ़ाया जाता है वह जादातर ढ़ाई हजार बरस का है जहां से मुस्लिम आदि धर्मों की स्थापना हुई। उसके पहले का विज्ञान बताता है पर फिर भी उसमे अंदाज ही जादा है। कोई पत्थर हाथ में लेकर ये इतने बरस का है ये बता सकते है लेकिन सच में क्या हुआ था ये बताने के लिए कोई प्रूफ नही है। लिखा पढी भी ढाई हजार बरस के अंदर की ही है। इस धरती पर देवी देवताओं का राज्य था उस समय विज्ञान भी अपनी शिखर अवस्था मे था। पुष्पक विमान भी इसी धरती पर थे और देवी देवता दूसरे-तिसरे कोई नही खुद उन्नत अवस्था में पहुंचा हुआ मानव ही था। मानव से फरिश्ता और फरिश्ता से देवता बनने का यह ज्ञान स्वयं भगवान शिव सांप्रत काल मे दे रहे है। वह रूहानी ड्रिल है और उनके सिवा दुनिया मे यह ड्रिल कोई सीखा नही सकते। बाकी जो भी सिखाते है वह सब है जिस्मानी ड्रिल। इसके लिए सिर्फ आत्मिक स्वरूप की प्रैक्टिस करनी होती है और जिस्मानी ड्रिल से भी वह सहज है। आत्मिक स्वरूप में हम सब शिव के बच्चे है और हमे उन्हे उस स्वरूप में याद करना है, बाकी आपको फरिश्ता या देवीदेवता कैसे बनाना ये उनके ऊपर छोड देना है, कारण इसकी सूक्ष्मता तो वही जानते है। है ना सहज??? वो बोलते है, आप एक कदम बढ़ाओ, मै हजार कदमों से आऊंगा। तो फिर आप एक कदम आगे नही निकालेंगे। देवता बनना है तो इतना तो करना पडेगा… बाकी मर्जी आपकी, अर्जी हमारी। नही तो एक दिन आप बोलेंगे कि आप हमारे इतने नजदीक रहते थे आपने क्यों नही बताया, हम कम से कम फरिश्ता तो बन जाते…??? -अनंत संभाजी
फरिश्ता बनना है…???
December 31, 2020 जीवन-प्रबंधनखबरें और भी