- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु दादी के नाम जारी करेंगी डाक टिकट
- आठ हजार सेवाकेंद्रों पर अलसुबह से रात तक चलेगी योग-साधना
- शांतिवन में पुष्पांजली कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे 18 हजार लोग
शिव आमंत्रण/आबू रोड (राजस्थान)। ब्रह्माकुमारीज़ की पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि की 16वीं पुण्यतिथि शुक्रवार को भारत सहित विश्व के 137 देशों में विश्व बंधुत्व दिवस के रूप में मनाई जाएगी। संस्थान के आठ हजार सेवाकेंद्रों पर अलसुबह से योग-साधना के माध्यम से लाखों भाई-बहनें अपने श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे। वहीं नई दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु राष्ट्रपति भवन से सुबह 11 बजे दादी के नाम डाक टिकट जारी करेंगी।
मुख्यालय शांतिवन में होने वाले मुख्य पुष्पांजली कार्यक्रम में शामिल होने के लिए देशभर से 18 हजार से अधिक लोग पहुंच चुके हैं। यहां अलसुबह 3 बजे से विशेष योग-साधना की जाएगी। इसके बाद सुबह 7 बजे सामूहिक सत्संग (मुरली क्लास) के बाद सुबह 8 बजे मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, महासचिव राजयोगी बीके निर्वैर भाई, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी दादीजी के स्मृति स्थल प्रकाश स्तंभ पर पहुंचकर पुष्पांजली अर्पित करेंगे। सुबह 11 बजे से दादी की याद में परमात्मा को विशेष भोग लगाकर वरिष्ठ पदाधिकारी दादी के साथ के अपने अनुभव सांझा करेंगे।
प्रकाश स्तंभ को फूलों से सजाया-
दादीजी की याद में बने प्रकाश स्तंभ को फूलों से सजाया गया है। वहीं दादी के जीवन की मुख्य शिक्षाओं को लिखा गया है। गुरुवार को दिनभर वरिष्ठ भाई-बहनों की क्लास जारी रही। जिसमें दादीजी द्वारा की गईं सेवाओं और शिक्षाओं के सभी के साथ सांझा किया गया।
सबसे लंबे समय तक रहीं मुख्य प्रशासिका-
ब्रह्माकुमारीज़ के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद वर्ष 1969 में आपने इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय की बागडोर संभाली। वर्ष 2007 तक 38 साल मुख्य प्रशासिका के रूप में सेवाओं को विश्व पटल तक पहुंचाया। आपकी दूरदृष्टि, कुशल प्रशासन, स्नेह, विश्व बंधुत्व की भावना और परमात्म शक्ति का ही नतीजा है कि विश्व के 137 से अधिक देशों में भारतीय पुरातन संस्कृति अध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन का संदेश पहुंचाया। साथ ही भारत के कोने-कोने में सेवाकेंद्रों की स्थापना की गई। आपके त्याग, लगन और परिश्रम का परिणाम है कि आपके सान्निध्य में ही 40 हजार से अधिक ब्रह्माकुमारी बहनें समर्पित हो चुकी थीं।
बचपन से कुशाग्र बुद्धि और दूर दृष्टि का वरदान प्राप्त था-
दादीजी बचपन से कुशाग्र बुद्धि और दूर दृष्टि का वरदान प्राप्त था। जिससे वह जीवन में आने वाली परिस्थितियों को भाप कर उनका उचित समाधान कर लेती थीं। वे बाल्यकाल में ही इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय के सम्पर्क में आई। जो उस समय ओम मंडली के नाम से जाना जाता था। उनके एक झलक मात्र से ही निराश व्यक्तियों के जीवन में आशा की किरण प्रस्फुटित हो जाती थी। ऐसी महान विभूति का जन्म अविभाज्य भारत के सिंध प्रांत में वर्ष 1922 में हुआ था जो कि अब पाकिस्तान में है। अपनी नैसर्गिक प्रतिभा, दिव्य दृष्टि और मन-मस्तिष्क के विशेष गुणों की सहज वृत्ति के कारण वे 14 वर्ष की अल्पायु में ही इस संस्था के सम्पर्क में आईं। 1936 में अपना जीवन परमात्म कार्य एवं मानव सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
बचपन से ही पूजा-पाठ करती थीं-
दादी जी के बचपन का नाम रमा था। रमा बचपन में श्रीकृष्ण की भक्त थी। सात-आठ वर्ष की उम्र से ही प्रतिदिन श्रीकृष्ण की पूजा करना उनकी दिनचर्या में शामिल था। उनके घर के पास में श्रीराधा-श्रीकृष्ण का मंदिर था। जहां वे सुबह-शाम पूजा करने जाती थीं। रात के समय श्रीकृष्ण को झूले में झुलातीं और फिर झूले से उठाकर पलंग पर सुलाती थी। यह उनका नित्य का नियम था। रमा बचपन से ही शांत और विनम्र स्वभाव की थी। बड़ों के प्रति हमेशा आदर भाव रखती थी। बचपन से ही दैवी संस्कार होने के कारण उन्होंने न कभी डांट खाई और न ही कभी किसी को अपशब्द कहे और न ही कभी सिनेमा देखने गईं। प्रतिदिन भागवत पढ़ती थी। सिंधी होने का कारण सुखमणि और ग्रंथ साहब भी पढ़ती थी। स्कूल में धर्म की क्लास में नियमित उपस्थित रहती थी। उन्होंने जप साहेब, सुखमणि और गीता का बचपन में ही अध्ययन कर लिया था।