सिकंदर मकदूनिया (मेसेडोनिया) का ग्रीक शासक था। उसे एलेक्जेंडर तृतीय और एलेक्जें डर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। वह अपनी मृत्यु तक हर उस जमीन को जीत चुका था जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक के लोगों को थी। वही सिकन्दर जब अपनी जिंदगी की आखरी सांसे ले रहा था तब उसने अपने चिकित्सको से एक इच्छा जाहिर की और कहा! कि मै अपनी माँ को देखें बिना नहीं मरना चाहता हूँ। सिकंदर की माँ किसी दूसरें गॉव में रहती थी। कम से कम चौबीस घंटे लग जाते उन्हें पहुचने में, पर अफ़सोसनाक बात ये थी कि सिकंदर के पास इतना वक्त नहीं था।
वह अभी असहाय था। इस हालात में इतनी जल्दी उसकी माँ कैसे पहुँच पायेगी ? इसी दुविधा में वह पड़ा रहा, घर में और कोई बड़ा – बुढ़ा नहीं था जिनसे वह विचार विमर्श कर सकें। बहुत सोच विचार कर वह अपने चिकित्सको से बोला, कि मै सब कुछ देने के लिए तैयार हूँ, जो भी तुम्हारी फीस हो ले लो, लेकिन चौबीस घंटे मुझे और जिला दो ताकि जिससे मै पैदा हुआ हूं, उससे विदा तो ले लूं। चिकित्सको ने कहा – सीमित आयु बची हैं। यदि मैं अपना बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ दूँ तो भी यह असंभव है। तब सिकंदर ने कहा – मै तुमको अपना आधा सम्राज्य दे दुंगा। इस पर भी चिकित्सक कुछ न बोले। चिकित्सको को उदास और चुप खड़े देख उसने कहा कि तुम मेरा पूरा सम्राज्य ले लो। आज वह खुद को हारा हुआ महसूस कर रहा था। उसे लग रहा है उसका कोई अस्तित्व नहीं है। वह सिर्फ एक लिजलिजा मांस का लोथड़ा है। वह सोचने लगा काश! मुझे पता होता कि पूरा सम्राज्य देकर भी एक सांस नहीं मिलती है तो अपने जीवन भर की सांसे इस सम्राज्य के लिए क्यों खराब करता ?
अपना जीवन खराब मत करो…….
August 31, 2020 बोध कथा शिक्षाखबरें और भी