- मनमोहिनीवन परिसर में मनाया गया 89वां त्रिमूर्ति शिव जयंती महोत्सव
- दादी रतनमोहिनी ने शिव झंडावंदन किया, शिव ध्वज के नीच कराया संकल्प

शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के मनमोहिनीवन परिसर में 89वां त्रिमूर्ति शिव जयंती महोत्सव मनाया गया। इस दौरान मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके जयंती दीदी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी सहित वरिष्ठ भाई-बहनों ने शिव झंडावंदन कर शुभ संकल्प कराए।
कार्यक्रम में अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके जयंती दीदी ने कहा कि भारत में 12 ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध हैं और गली-गली में शिवालय बने हुए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि परमपिता परमात्मा कभी इस सृष्टि पर आएं हैं और विश्व कल्याण का कार्य किया है, तभी तो हम उन्हें याद करते हैं। परमात्मा का स्वरूप ज्योतिर्बिंदु है। सभी धर्मग्रंथों में परमात्मा के अवतरण की बात कही गई है। किसी भी धर्म ग्रंथ में परमात्मा के जन्म लेने की बात नहीं है। हर जगह प्रकट होने, अवतरण पर परकाया प्रवेश की बात को ही इंगित किया गया है। क्योंकि परमात्मा का अपना कोई शरीर नहीं होता है। वह परकाया प्रवेश कर नई सतयुगी सृष्टि की स्थापना का दिव्य कार्य कराते हैं। शिवपुराण में स्पष्ट लिखा है कि मैं ब्रह्मा के ललाट से प्रकट होऊंगा। शिव जन्ममरण से न्यारे हैं। ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के भी रचयिता त्रिमूर्ति हैं, जिन्हें हम परमात्मा शिव कहते हैं।
संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने कहा कि शिवलिंग पर तीन रेखाएं परमात्मा द्वारा रचे गए तीन देवताओं की ही प्रतीक हंै। परमात्मा शिव तीनों लोकों के स्वामी हैं। तीन पत्तों का बेलपत्र और तीन रेखाएं परमात्मा के ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी रचयिता होने का प्रतीक हैं। वे प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सतयुगी दैवी सृष्टि की स्थापना, विष्णु द्वारा पालना और शंकर द्वारा कलियुगी आसुरी सृष्टि का विनाश कराते हैं। इस सृष्टि के सारे संचालन में इन तीनों देवताओं का ही विशेष अहम योगदान है।

परमात्मा जन्ममरण से न्यारे हैं-
अतिरिक्त महासचिव बीके करुणा भाई ने कहा कि विश्व की सभी महान विभूतियों के जन्मोत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन परमात्मा शिव की जयंती को जन्मदिन न कहकर शिवरात्रि कहा जाता है, आखिर क्यों? इसका अर्थ है परमात्मा जन्ममरण से न्यारे हैं। उनका किसी महापुरुष या देवता की तरह शारीरिक जन्म नहीं होता है। वह अलौकिक जन्म लेकर अवतरित होते हैं। उनकी जयंती कर्तव्य वाचक रूप से मनाई जाती है। जब- जब इस सृष्टि पर पाप की अति, धर्म की ग्लानि होती है और पूरी दुनिया दु:खों से घिर जाती है तो गीता में किए अपने वायदे अनुसार परमात्मा इस धरा पर अवतरित होते हैं।

ये भी रहे मौजूद-
इस मौके पर रुस की बीके सुधा दीदी, वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके डॉ. सविता दीदी, मेडिकल विंग के सचिव डॉ. बनारसी लाल शाह, आवास-निवास के प्रभारी बीके देव भाई, डॉ. सतीश गुप्ता, बीके प्रकाश भाई सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।