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गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व……. - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व…….

गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व…….

राष्ट्रीय समाचार
  • विघ्नहर्ता गणेशजी का जीवन सिखाता है जीवन के सूत्र

शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। विघ्नहर्ता, गणपति गजानन, मंगलमूर्ति का जीवन हमें जीवन के महान सूत्र सिखाता है। दिव्यगुणों, विशेषताओं से संपन्न आपका बहुआयामी व्यक्तित्व हमें भी जीवन में सीखने, आगे बढ़ने और समस्याओं, परिस्थितियों को दूर करने की सीख देता है। जीवन को ज्ञान से भरपूर करके उसे श्रेष्ठ और महान बनाने की प्रेरणा देता है। इस वर्ष संकल्प करें कि श्रीगणेश जी के जीवन से कोई एक सीख लेकर उसे आत्मसात करेंगे और महान बनाएंगे।

गजानन गणपति महाराज के जीवन से इस बार कु छ नया सीखें और प्रैक्टिकल में अपनाए :-

सूंड: सूंड आध्यात्मिक शक्ति की प्रतीक है। हाथी की सूंड इतनी मजबूत और शक्तिशाली होती है कि वह वृक्ष को भी उखाड़ कर, लपेटकर ऊपर उठा लेता है। साथ ही छोटे-छोटे बच्चों को भी प्रणाम करता है, किसी को पुष्प अर्पित करता है, पानी का लोटा चढ़ाकर पूजा करता है, सुई जैसी सूक्ष्म चीज को भी उठा लेता है। ज्ञानवान व्यक्ति भी अपने मूल आदतों को जड़ों से उखाड़कर फेंकने में समर्थ होता है। सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों को भी धारण करने के लिए, दूसरों को सम्मान, स्नेह और आदर देने में वह कुशल होता है। अपने पुराने संस्कारों को जड़ से पकड़कर निकाल फेंकने के लिए भी हाथी की सूंड जैसी उसमें आध्यात्मिक शक्ति होती है। इस तरह हाथी की सूंड ज्ञानी व्यक्तियों की क्षमताओं का प्रतीक है।

कर्ण: उनके कान पंखे जैसे बड़े-बड़े होते हैं। बड़े- बड़े खुले कान हमें यह शिक्षा देते हैं कि आवश्यक एवं महत्वपूर्ण बात चाहे वह स्व के प्रति हो या अन्य के प्रति ध्यान से सुनें। बड़े-बड़े कान, ज्ञान श्रवण के प्रतीक हैं। वे ध्यान से, जिज्ञासापूर्वक, ग्रहण करने की भावनाओं को भावना से, पूरा चित्त देकर सुनने के प्रतीक हैं। ज्ञान की साधना में श्रवण, मनन और निज अध्ययन यह तीन पुरुषार्थ बताए गए हैं। इनमें सबसे प्रथम श्रवण है। ज्ञान के सागर परमात्मा के विस्तृत ज्ञान का श्रवण इन बड़े कानों से समुचित करना ही इसका प्रतीक है।

आंखें: उनकी आंखें दिव्य दृष्टि वाली होती हैं, उनसे छोटी चीज भी बड़ी दिखाई देती है। उनकी छोटी आंखें दूरदर्शिता का प्रतीक होती हैं। हमारे जीवन में कई सूक्ष्म बातें, रहस्यपूर्ण बातें होती हैं जिन्हें दूरदर्शिता को ध्यान में रखते हुए, उनके परिणाम को देखते हुए, फिर अपनानी चाहिए। ज्ञानवान व्यक्ति का भी एक गुण होता है। वह छोटो में भी बढ़ाई देखता है। हर एक की महानता उसके सामने उभरकर आती है और सबको आदर देता।

महोदर: गणेशजी का बड़ा पेट समाने की शक्ति का प्रतीक है। ज्ञानवान व्यक्ति के सामने भी निंदा स्तुति, जय-पराजय ऊंच- नीच की परिस्थितियां आती हैं परंतु वह उनको स्वयं में समा लेता है। गणेशजी का लंबा पेट अथवा बड़ा पेट (महोदर) ज्ञानवान के इसी गुणों का प्रतीक है।

चार भुजाएं: गणेशजी की चार भुजाएं दिखाई जाती है उनमें से एक में कुल्हाड़ा दिखाया जाता है। ज्ञानवान व्यक्ति में ममता के बंधन काटने और संस्कारों को जड़ से उखाड़ने की क्षमता होती है उसी का प्रतीक यह कुल्हाड़ा है। ज्ञान एक कुल्हाड़ी की तरह से है जो उसके मन के जुड़े हुए दैहिक नातों को चूर चूर कर देता है। गीता में भी ज्ञान को तेज तलवार की उपमा दी गई है, जिससे कि काम रूपी शत्रु को मारने के लिए कहा गया है। आसुरी संस्कारों को मार मिटाने के लिए ज्ञानरूपी कुल्हाड़ा जिसके पास है वह आध्यात्मिक योद्घा ही ज्ञानी है। हमें अपना जीवन गणेश जी जैसा पूजनीय बनाना है तो ऐसी बड़ी शक्तियां धारण करनी होगी।
वरद मुद्रा: गणपति जी का एक हाथ सदा वरद मुद्रा में दिखाया जाता है। देवता हमेशा देने वाले ही होते हैं। जिसकी जैसी भावना, श्रद्धा होती है उन्हें वैसी ही प्राप्ति अल्पकाल के लिए होती है। गणेशजी हमेशा दाता के रूप रहते हैं वैसे ही ज्ञानवान व्यक्ति की स्थिति ऐसी महान हो जाती है कि वह दूसरों को निर्भयता और शांति का वरदान देने की सामर्थ वाला हो जाता है। वह अपनी शुभ मनसा से दूसरों को आशीष प्रदान कर सकता है।

बंधन (रस्सी): आत्मा का परमात्मा के साथ नाता जोड़ना भी प्रेम के बंधन में बंधना है। गणपतिजी के एक हाथ में जो डोरे (बंधन) हैं वह इसी प्रेम के डोरे हैं। वेदिव्य नियमों के शुद्ध बंधन हैं। ज्ञानी स्वयं इन नियमों के बंधनों में स्वयं को ढालता है। इसका दूसरा भाव है कि आत्मा परमधाम से अकेली आती है जैसे ही वह देह में प्रवेश करती है तो कई संबंधों के बंधनों में बंध जाती है और उनके साथ उसका कर्मों का लेखा-जोखा शुरू हो जाता है। इन बंधनों से मुक्त होने के लिए ही आत्मा ईश्वर के पास आती है कि मुक्तिदाता मुझे मुक्त करो।

मोदक: मोदक शब्द खुशी प्रदान करने वाली वस्तु का वाचक है। ज्ञानवान व्यक्ति को भी अनेक कठिनाइयों, में से गुजरना पड़ता है अर्थात उसे तपस्या करनी पड़ती है। जीते जी मरना होता है और इसी से वह अधिकाधिक मिठास व ज्ञान का रस अपने आप में भरता है।

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