– पांच दिवसीय राष्ट्रीय यौगिक कृषि-वैश्विक कृषि का प्रकाश स्तंभ महासम्मेलन का शुभारंभ
– देशभर से छह हजार किसान, कृषि वैज्ञानिक, कृषि अधिकारी-कर्मचारी पहुंचे शांतिवन
– हरियाणा सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री देवन्द्रर सिंग बबली और महाराष्ट्र सरकार के पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री सतेज डी पाटिल अतिथि के रूप में हुए शामिल
शिव आमंत्रण,18 सितंबर, आबू रोड/राजस्थान। ब्रह्माकुमारीज के शांतिवन मुख्यालय में पांच दिवसीय राष्ट्रीय यौगिक कृषि-वैश्विक कृषि का प्रकाश स्तंभ महासम्मेलन का शुभारंभ हुआ। इसमें देशभर से छह हजार से अधिक किसान, ग्रामीण, कृषि वैज्ञानिक, कृषि अधिकारी भाग ले रहे हैं।
महासम्मेलन के स्वागत सत्र में संबोधित करते हुए हरियाणा सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री जिंद से आए देवन्द्रर सिंग बबली ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज का कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग किसानों में जागरुकता ला रहा है। प्रभाग से जुड़कर आज देश में हजारों किसान राजयोग का उपयोग करते हुए यौगिक खेती कर रहे हैं। मैं किसान का बेटा हूं। मैंने खुद खेती करवाई और की है। आज रासायनिक खादों के अत्यधिक प्रयोग से कहीं न कहीं हमारे अनाज की जो खुशबू, पौैष्टिकता थी वह गायब हो गई है।
मंत्री सिंग ने कहा कि पिछले तीन दशकों में हमने खेतों में पेस्टीसाइड डालकर जहर का उत्पादन शुरू किया है। हरिणाया में स्थिति ये है कि कई गांवों में हर तीसरे व्यक्ति को कैंसर है। पहले हम फसल चक्र पद्धति अपनाते थे। कई तरह के अनाज का उत्पादन करते थे। पहले किसान खेती-बाड़ी के साथ बागवानी भी करता था। सब्जियां भी उगाता था। लेकिन हमने तेजी से आगे बढऩे की होड़ में हम ज्यादा उत्पादन देने वाली फसलों लगाने लगे और पेस्टीसाइड उपयोग करने लगे। किसान बागवानी की ओर बढ़े इसके लिए हरियाणा सरकार किसानों को प्रेरित कर रही है। जैविक खेती और नशामुक्ति के लिए ब्रह्माकुमारीज की बहनें लोगों को जागरूक कर रही हैं। आपके इस प्रयास को हर गांव तक ले जाने का प्रयास करुंगा।
यहां से जुड़कर किसान खुद तैयार कर रहे जैविक खाद-
महाराष्ट्र सरकार के पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री सतेज डी पाटिल ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज ने विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को जीने की नई राह दिखाई है। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। हम किसानों के योगदान को भूल नहीं सकते हैं। किसानों को शाश्वत यौगिक खेती के बारे में जागरूक करने बहुत ही सराहनीय कार्य कर रही हैं। भारत जीवनशैली प्राचीन काल से आकर्षण का केंद्र रही है। राजयोग को खेती में शामिल करने से किसान उन्नति कर सकते हैं। यहां से जुड़कर कई किसानों ने खुद जैविक खाद तैयार किया है और आज सफलतम रूप से यौगिक खेती कर रहे हैं।
2014 में 14 फीसदी ही बची जीडीपी-
लखनऊ से आए उप्र के कृषि निदेशालय के उपनिदेशक बद्री विशाल तिवारी ने कहा कि भारत एक समय सतयुगी, स्वर्णिम भारत था। प्रकृति संतुलित और सब सुखी थे। वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालें तो आज खेती का हमारी जीडीपी में लगातार योगदान घटता जा रहा है। वर्ष 1951 में 51 प्रतिशत कृषि का जीडीपी में योगदान था जो लगातार घटता जा रहा है और वर्ष 2014 के आंकड़ों के मुताबिक मात्र 14 प्रतिशत ही रह गया है। इससे किसान तीन तरह से कमजोर हुआ है। आर्थिक रूप से किसान परिवार की प्रतिमाह आय 6-7 हजार रुपये है। दूसरा सामाजिक रूप से कमजोर होना। आज किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता है। भले वह चपरासी बनना स्वीकार कर लेता है। तीसरा है मानसिक रूप से कमजोर होना। देश में हर वर्ष करीब आठ हजार किसान खुदकुशी कर रहे हैं।
यौगिक खेती से किसान होंगे सशक्त-
उपनिदेशक तिवारी ने कहा कि त्रेतायुग में भी प्रकृति हमारी सहयोगी और सुखदायी थी। द्वापरयुग में भी प्रकृति का साथ मिला। हम रामराज्य की कल्पना करते हैं, जहां सब सुखी रहते हैं। रामराज्य के लिए जरूरी है कि अन्न और मन दोनों शुद्ध और सात्विक हों। यौगिक खेती से अन्न और मन दोनों शुद्ध होते हैं। इसका संबंध योग से है। योग माना जोड़। अपना संबंध परमपिता परमात्मा से जोड़कर उनसे शक्तिशाली किरणें लेकर फसल को शुभ बाइव्रेशन देना ही यौगिक खेती है। भौतिक और पराभौतिक ऊर्जा के समन्वय द्वारा प्राकृतिक विधि से की जाने वाली खेती ही शाश्वत यौगिक खेती है। इसके तहत हम प्रकृति को नष्ट नहीं करते हैं। जीवाणु की रक्षा करते हैं और उनसे प्रेमपूर्ण व्यवहार व्यवहार करते हैं। भौतिक ऊर्जा जो प्रकृति से मिलती है और पराभौतिक ऊर्जा को हम परमात्मा से योग के माध्यम से प्राप्त करते हैं। जैसे यदि सूर्य की किरणें समूची पृथ्वी पर पड़ रही हैं लेकिन यदि हमें लेंस की सहायता से कागज जलाना है तो उसे स्थिर करके एक ही केंद्र पर रखना होगा तो कागज सूर्य की किरणों से जलने लगता है। इसी प्रकार परमात्मा अपनी शक्तियां विखेर रहे हैं लेकिन उन्हें योग के माध्यम से हम संग्रहित, एकत्रित करते हैं। यौगिक खेती हजारों साल पुरानी प्रामाणित विधि है। इसे हजारों साल पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने प्राकृतिक खेती का उल्लेख किया है। ऋग्वेद में कहा गया है कि हम धरती मां की पूजा, हल की पूजा, बैल की पूजा, रोपाई लगाते हुए गीत गाने की परंपरा थी। हर चीज का सम्मान था, जिसे आज हम भूल गए हैं।
पहले बीज की करते थे पूजा-
नई दिल्ली से आए आईसीएआर के डिप्युटी डायरेक्टर डॉ. ए.के. सिंग ने कहा कि जब देश आजाद हुआ तो उस समय खाद्यान्न का उत्पादन 50 मिलियन टन था, आज 315 मिलियन टन है। हमारे यहां जितने भी उत्पाद हैं, सभी में रिकार्ड उत्पादन है। हम विश्व में दूसरे नंबर पर हैं। प्राकृतिक खेती जो गौ आधारित खेती है। यहां यौगिक खेती की बात की जाती है। किसान जो रासायनिक उत्पादों का प्रयोग करते हैं यह निर्णय उनके ऊपर है कि उन्हें इनका प्रयोग कितना करना है। विकसित देशों की तुलना में हम दस फीसदी भी कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते हैं। पहले जमीन में बीज डालने के पहले उसकी पूजा होती थी लेकिन आज इन तमाम विधियों में परिवर्तन हुआ है। प्राकृतिक खेती, यौगिक खेती पर अब तक जितना शोध होना चाहिए था उतना नहीं हुआ है।
अपनी खेती में भी करें प्रयोग-
मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी ने कहा कि देशभर से आए सभी किसान भाई यहां से जैविक खेती की शिक्षा लेकर जाएं और अपनी खेती में इसका प्रयोग जरूर करें। प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्षा बीके सरला दीदी ने कहा कि सभी किसान भाई यौगिक खेती अपनाएंगे तो कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकेंगे।
मैं सतयुगी आत्मा हूं-
मोटिवेशनल स्पीकर बीके शिवानी दीदी ने कहा कि स्वर्णिम दुनिया में हर एक आत्मा सुखी रहती है। अपने मन में संकल्प करें कि परमात्मा ने सतयुगी दुनिया बनाने के लिए मुझे चुना है। क्योंकि मैं सतयुगी आत्मा हूं। दिव्य आत्मा हूं। सबको देने वाली आत्मा हूं। सबको सुख देने वाली, प्यार देने वाली, सम्मान देने वाली सतयुगी आत्मा हूं। यहां से घर जाकर रोज इन बातों को दोहराएं। क्योंकि संकल्प से सृष्टि बनती है। जैसे हमारे संकल्प होते हैं वैसी ही हमारी सृष्टि बनने लगती है। हमें देवता बनना है। देवता सिर्फ देते हैं। देवता सबको प्यार, खुशी, आनंद, सम्मान, दुआ देते हैं। संस्कार से संसार बनता है। शुद्ध अन्न खाने से शुद्ध मन बनता है।
भूमि को बचाना है तो यौगिक खेती अपनाएं-
संस्थान की संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके संतोष दीदी ने कहा कि मैं किसान भाइयों की मेहनत को देखकर उनके आगे सिर खुशी से नतमस्तक हो जाता है। किसान भाई ही हमें अन्न देते हैं। यदि भारत भूमि को बचाना है तो प्राकृतिक-यौगिक खेती की ओर लौटना होगा। इससे जहां हमें शुद्ध अन्न मिलेगा तो तन स्वस्थ रहेगा और शुद्ध अन्न से शुद्ध मन भी रहेगा। भारत के अन्न में जो स्वाद मिलता है वह बाहर के अन्न में नहीं मिलता है। अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन भाई ने कहा कि यौगिक खेती, श्रेष्ठ क्वालिटी की खेती है। इससे जहां हमारा मन संतुलित रहेगा वहीं तन भी स्वस्थ रहेगा।
स्वागत भाषण प्रभाग के उपाध्यक्ष बीके राजू भाई ने दिया। सम्मेलन का लक्ष्य नेशनल को-ऑर्डिनेटर बीके सुनंदा दीदी ने बताया। संचालन सूरत से आईं प्रभाग की नेशनल को-ऑर्डिनेटर बीके तृप्ति दीदी ने किया। आभार मधुबन को-ऑर्डिनेटर बीके सुमंत भाई ने माना। स्वागत गीत मधुरवाणी ग्रुप के कलाकारों ने प्रस्तुत किया।