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जीवन में अपने लिए समय देने से होती है सकारात्मक परितर्वन की शुरुआत - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
जीवन में अपने लिए समय देने से होती है सकारात्मक परितर्वन की शुरुआत

जीवन में अपने लिए समय देने से होती है सकारात्मक परितर्वन की शुरुआत

मुख्य समाचार

– महिला सशक्तिकरण के लिए सकारात्मक परिवर्तन विषय पर आयोजन
– महिला प्रभाग की ओर से राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित, देशभर से भाग लेने पहुंचीं महिलाएं

शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान
ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के शांतिवन परिसर डायमंड हाल में पांच दिवसीय राष्ट्रीय महिला सम्मेलन का शुभारंभ किया गया। महिला सशक्तिकरण के लिए सकारात्मक परिवर्तन विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में देशभर से विभिन्न वर्गों से जुड़ीं महिलाएं भाग ले रही हैं।
शुभारंभ पर उड़ीसा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष मिनाती बेहरा ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान महिला जागृति के लिए सराहनीय कार्य कर रही है। जब महिलाएं संस्कारी बनेंगे तो समाज संस्कारी बनेगा। महिलाएं बेटा-बेटी को समान मानते हुए शिक्षा और संस्कार दें।

डॉ. परीन सोमानी संबोधित करते हुए।

19 पुस्तकों की लेखिका, अंतरराष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त, वर्ल्ड बैंक रिकार्ड होल्डर डॉ. परीन सोमानी ने अपने जीवन का अनुभव बताते हुए कहा कि वर्ष 2000 में मेरी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। बाल नहीं बचे थे। आधा चेहरा नहीं बचा। हम सबकुछ खो चुके थे। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैंने संकल्प किया कि जिंदगी से लडूंगी। फिर मैं अपनी आंखों की रोशनी पाने के लिए वैष्णो देवी, गोल्डन टेंपल, काबा गए। मेरा मानना है कि ईश्वर हमें कुछ देता नहीं है, वह इंस्पायर करता है। हम सभी परमात्मा के बच्चे हैं। 2010 में कैंसर जब बढ़ गया तो डॉक्टर ने कहा कि आप कुछ दिन के मेहमान हो। लेकिन मैं विचलित नहीं हुई। मैंने सोचा कुछ करना है। 2010 में केरल आयुर्वेदिक इलाज कराने गए। जहां डॉक्टर ने बताया कि इस बच्ची को बचाना मुश्किल है। इस लड़की का स्प्रीचुअल पावर बहुत है वही उसी ठीक करेगी। वहां से जब मैं वापस लौटी तो ऐसा लगा कि मैं दुर्गा माता बनकर आ रही हूं। आयुर्वेद के इलाज से मेरी शक्ति फिर से लौट आई। परमात्मा का आशीर्वाद, योग, ध्यान और आयुर्वेद की बदौलत मैं फिर से ठीक हो गई। मेरा सभी नारी शक्ति को तीन संदेश हैं पहला- खुद पर विश्वास करें। दूसरा अपने जीवन में पवित्रता लाएं और परमात्मा को याद करना। तीसरा है अपने मन के कचरे को निकालकर बाबा के बच्चे बनकर यहां से जाएं।  

संबोधित करते हुए वक्तागण व मंचासीन।

मातृ शक्ति के बिना विकास संभव नहीं-
समाजसेवा के क्षेत्र में कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुकीं डॉ. राजश्री गांधी ने कहा कि मातृ शक्ति की संकल्प शक्ति और कर्मठता के बिना कोई प्रगति और विकास संभव नहीं है। तीन लिम्बका बुक ऑफ रिकार्ड होल्डर, मोटिवेशनल स्पीकर डॉ. अदिति सिंघल ने कहा कि हम अपने जीवन में कुछ ऐसा बदलाव लेकर आएं कि अपने समय को बदल दें। यह ज्ञान मैंने ब्रह्माकुमारीज़ में सीखा है। अपने जीवन में सकारात्मक परितर्वन की शुरुआत अपने लिए समय देने से होती है। जब हम खुद को समय देते हैं तो अपनी कमी-कमजोरियों का पता चलता है। पसंद-नापसंद का पता चलता है। खुद की खूबियों, विशेषताओं को पहचान पाते हैं।

सांस्कृतिक प्रस्तुति देते बच्चे।

हर एक स्वयं का मूर्तिकार है-
संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने कहा कि परमात्मा ज्ञान देकर नर को नारायण और नारी को लक्ष्मी समान बनने की शिक्षा दे रहे हैं। इस दुनिया को नई दुनिया बनाकर रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं। महिला प्रभाग की अध्यक्षा बीके चक्रधारी दीदी ने कहा कि सतयुगी दुनिया में हमारा जीवन गुणों और संस्कारों से भरपूर था जो आज खो गया है। यह ईश्वरीय विश्व विद्यालय स्वर्णिम दुनिया की संकल्पना को साकार करने के लिए कार्य कर रहा है।
 महिला प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके शारदा बहन ने कहा कि हर एक स्वयं का कलाकार, चित्रकार और मूर्तिकार है। हम अपने जीवन को जैसे चाहें वैसा आकार और दिशा दे सकते हैं। हमारे विचार मन का भोजन हैं। यदि सोच दुख, गम, समस्याओं की है तो उसका चेहरा, बोल और व्यवहार उसी तरह हो जाएगा। यदि सोच में शीतलता, शांति, बैलेंस और उमंग-उत्साह है तो व्यवहार, हाव-भाव, उठना-बैठना वैसा ही हो जाता है। सारा खेल सोच का है। इस दौरान बीके माला ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संचालन प्रभाग की मुख्यालय संयोजिका डॉ. बीके सविता दीदी ने किया।

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