- कला-संस्कृति प्रभाग के राष्ट्रीय सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर बीके शिवानी दीदी ने की पॉजीटिव चैंज ऑफ आर्टिस्ट विषय पर संबोधित
- देशभर से पहुंचे कलाकार ले रहे हैं भाग, सुबह-शाम दो सत्रों में चल रहा है सम्मेलन
शिव आमंत्रण/आबू रोड (राजस्थान)। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के शांतिवन परिसर स्थित डायमंड हाल में चल रहे कला-संस्कृति प्रभाग के राष्ट्रीय सम्मेलन में दो सत्रों में वक्ता अपने अनुभव सांझा कर रहे हैं। सकारात्मक परिवर्तन की कला से आनंदमय जीवन विषय पर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।
सुबह के सत्र में अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर बीके शिवानी दीदी ने पॉजीटिव चैंज ऑफ आर्टिस्ट विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि जब हम परफ्यूम लगाते हैं तो किसी को बोलना नहीं पड़ता है। हम जहां जाते हैं खुशबू अपने आप आती है, इसी तरह हमारी सोच, भावनाएं और कर्म हमारी ऊर्जा बनते हैं। यही कारण है कि हमें कुछ लोगों से मिलकर बहुत अच्छा लगता है। मन खुश हो जाता है, हल्का हो जाता है। यह है उस व्यक्ति की परफ्यूम। जिस व्यक्ति के विचार श्रेष्ठ, सकारात्मक, पवित्र होंगे तो उससे मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इसी तरह के बाइव्रेशन आएंगे। यहां जो शांति और शक्ति आप सभी ने अपने में भरी है उसे अपने साथ घर लेकर जाना है। कला एक शक्ति है। इसके साथ एक बात और जीवन में एड कर दें कि हमें कौन सा बोल बोलना है? कौन से विचार करना है? कौन से कर्म करना है? ताकि जो भी हमारे संपर्क में आए तो उसी खुशी और शक्ति की अनुभूति हो।
अपनी परफॉर्मेंस पर ही ध्यान दें-
शिवानी दीदी ने कहा कि जब एक कलाकार स्टेज पर परफॉर्मेंस करता है तो वह स्वयं को देखता है। वह यह नहीं देखता कि लोग क्या सोच रहे हैं, क्या रिएक्ट कर रहे हैं वह अपनी परफॉर्मेंस चालू रखता है। ऐसे ही हमें अपने विचार, सोच, कर्म को देखना है। हमें शुभ, श्रेष्ठ विचार करना है न कि सामने वाले के प्रभाव में आकर उसके अनुसार निगेटिव विचार, कर्म करना है। इसे कहते हैं आत्मनिर्भर। परिस्थिति पर, लोगों पर निर्भर नहीं। परिस्थिति कैसी भी सामने आए, मेरी श्रेष्ठ सोच, मेरे श्रेष्ठ कर्म करना राजयोग सिखाता है। राजयोग श्रेष्ठ जीवन जीने की कला है। सतयुगी संसार बनाने की कला है। अब इस कला को अपने जीवन में शामिल करना है।
परिस्थितियों को स्वीकार करना सीखें-
दीदी ने कहा कि जीवन में जिस परिस्थिति को बदला जा सकता है उसे बदल दो। लेकिन जिस परिस्थिति को बदला नहीं जा सकता है उसे जो है, जैसा है वैसा ही स्वीकार कर लो। किसी भी बात को जब हम स्वीकार कर लेते हैं तो मन व्यर्थ सोचना बंद कर देता है। जब हम कहते हैं कि यह बात मैं कभी नहीं भूलूंगा। यह बात मैं कभी क्षमा नहीं कर सकता, यह एक संकल्प है। दूसरा संकल्प है कि मेरे ही पूर्व जन्म के कर्मों का हिसाब-किताब पूरा हुआ। बीती को बिंदी लगाओ। फुलस्टाफ लगाओ। जब यह संकल्प करेंगे तो हमारी एनर्जी बचेगी। हम आगे बढ़ेंगे। जब हम रोज यह संकल्प करेंगे तो हमारा दर्द खत्म हो जाएगा और जीवन में चमत्कार होगा। फिर सामने वाला भी बदलना शुरू हो जाएगा। दूसरों को दुआएं देकर भी हम उनके संस्कार को बदल सकते हैं। इससे मन हल्का हो जाता है।
मेरी सफलता में ध्यान का सबसे बड़ा रोल-
नेशनल कल्चरल प्रोग्राम के अध्यक्ष पंडित हेमंत गुरु महाराज ने कहा कि मेरे जीवन में जितनी भी समस्याएं आईं, दर्द मिला उस पर मैंने कंट्रोल किया। कभी हारा नहीं और मैंने ध्यान किया। ध्यान के दौरान मैं प्लानिंग करता था कि आज मैं क्या करुंगा। मेरी सफलता में ध्यान का सबसे बड़ा रोल है। जितनी ज्यादा जीवन में समस्याएं आएंगी, उतना पक्का बनाएंगी। मैं हमेशा अपनी गलतियों को लोगों से पूछता था और उन्हें दूर करता था।
4500 से अधिक शवों का किया अंतिम संस्कार- एनजीओ एक कोशिश ऐसी भी… की अध्यक्ष वर्षा वर्मा ने कहा कि मैंने अपने हाथों से अब तक 4500 से अधिक लावारिश शवों का अंतिम संस्कार कराया है। जब जरूरतमंद लोग मुझे काल करते हैं और जब मैं उनके विश्वास पर खरा उतर पाती हूं तो वही मेरे लिए सफलता है। जब मैं रात में सोती हूं तो चैन की नींद आती है कि मैं आज किसी के लिए कुछ कर सकी।
उत्तराखंड से आए संगीत महाविद्यालय के निदेशक आचार्य अंकित पांडे ने कहा कि मेरे लिए सफलता के मायने हैं कि कोई भी बच्चा है उसकी कला का निखारकर उसे मंच प्रदान करना। अच्छी शिक्षा देना। उन्हें गलत संगत से बचाना। समाज सुधार के लिए मैंने संगीत का माध्यम चुना।
इन्होंने भी व्यक्त किए विचार-
दिल्ली से आए जीबी पंत हॉस्पिटल के कॉर्डियोलाजिस्ट डॉ. मोहित गुप्ता, विंग के उपाध्यक्ष बीके दयाल भाई, वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके सविता दीदी, कला विषारद डॉ. ऋतु शिल्पी, भी अपने विचार व्यक्त किए। संचालन महाराष्ट्र से आईं रीजनल को-कॉर्डिनेटर बीके कुंदा बहन ने किया।