- समाज सेवा प्रभाग का चार दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन जारी
- मूल्य आधारित सेवा द्वारा समृद्ध समाज की पुनर्स्थापना विषय पर चल रहा है सम्मेलन
- देशभर से छह हजार से अधिक समाजसेवी, रोटरी क्लब के पदाधिकारी ले रहे हैं भाग
शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान। ब्रह्माकुमारीज़ के शांतिवन परिसर स्थित डायमंड हाल में चल रहे समाज सेवा प्रभाग के राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन वक्ताओं ने सकारात्मकता- जीवन का सार विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। मूल्य आधारित सेवा द्वारा समृद्ध समाज की पुनर्स्थापना विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में उत्तराखंड के बद्रीनाथ से विधायिक ब्रिज लता ने कहा कि मैं यहां आकर स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं। यहां की सभी गतिविधियां यंत्रवत चल रही हैं। जो अलौकिक शक्तियों के माध्यम से सम्पन्न हो रहा है। सेवा दो तरह की है निष्काम व सकाम सेवा। निष्काम सेवा केवल मन की खुशी के लिए की जाती है। बता दें कि सम्मेलन में देशभर से छह हजार से अधिक समाजसेवी और रोटरी क्लब के पदाधिकारी भाग ले रहे हैं।
मुंबई से आए केरला जोन के क्षेत्रीय संयोजक व प्रेरक वक्ता प्रो. ईवी स्वामीनाथन भाई ने कहा कि समाजसेवी में तीन विशेषता- उमंग-उत्साह, सन्तुष्टता और अच्छा स्वास्थ्य अच्छा। समाजसेवा का अर्थ है अपने दिव्य धन को बढ़ाना। समाज सेवक रोटी, कपड़ा और मकान देता है। आपदा आने पर अन्दर का देवत्व स्वतः ही जागृत हो जाता है। यही वास्तविक समाजसेवा है। हमें किसी प्राकृतिक आपदा की प्रतीक्षा नहीं करना चाहिए। हम अपने अन्दर की दिव्यता को जागृत करेंगे तो स्वतः ही अच्छे समाज सेवक बन सकते हैं।
परिस्थितियां आने पर ही जीवन मूल्यवान बनता है-
प्रेरक वक्ता प्रो. ईवी बीके गिरीश ने कहा कि भटकाव और ठहराव में अन्तर होता है। भटका हुआ इधर-उधर घूमता रहता है और ठहरा हुआ स्थिर रहता है। भटकी हुई नदी प्यासे के पास जाती है और कुएं के पास प्यासा जाता है। ऊपर से नीचे जाने वाला मीठे से खारा हो जाता है और नीचे से ऊपर जाने वाला मीठा होता है। जीवन एक अनुभूति है। जीवन में शान्ति, स्नेह, आनन्द और खुशी तब आता है जब हम सकारात्मकता का अनुभव करते हैं। स्वयं को आत्मा समझने का ज्ञान ही जीवन का आधार है। आत्मा का ज्ञान होने के बाद मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। जीवन में अधिक परिस्थितियां आने पर ही हमारा जीवन मूल्यवान बनता है। दुख और सुख की अनुभूति बाहर से नहीं होती, बल्कि अन्दर से होती है। सदा सकारात्मक रहने का अभ्यास सत्य ज्ञान के आधार पर सम्भव है। खुद को कहिए कि मैं सकारात्मक व्यक्ति हूं। मैं खुश हूं। मेरा जीवन सुन्दर है। मेरा भविष्य बहुत सुनहरा है। जैसा सोचेंगे, वैसा हाे जाएगा। डिप्रेशन, तनाव, अनिश्चिन्तता का कारण स्वयं के प्रति हीन भावना होना है। परमात्मा हमें मीठे बच्चे कहकर पुकारता है।
इन्होंने भी व्यक्त किए अपने विचार-
- गुलबर्गा से आईं कर्नाटक उप क्षेत्र की अध्यक्षा राजयोगिनी बीके विजया बहन ने कहा कि समाज सेवा के प्रति नया दृष्टिकोण अपनाकर सेवा करेंगे तो एक नई खुशी मिलेगी। मूल्यों की धारणा करके जब हम सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे तो आत्मिक तृप्ति मिलेगी और समृद्ध समाज का निर्माण होगा। जीवन का मूल्य तभी बढ़ता है जब हमारे अन्दर दिव्य गुणों की धारणा होती है। किसी भी संगठन में सभी का महत्व है। इसलिए छोटे- बड़े सभी का मान-सम्मान रखते हुए उनके साथ तालमेल बिठाना जरूरी है।
- अजमेर सबजोन की प्रभारी एवं प्रभाग की राजस्थान जोन संयोजिका राजयोगिनी बीके शान्ता दीदी ने कहा कि परमात्मा हमें कलिकाल के युग में शान्ति, प्रेम से सबके साथ रहने की विधि सिखा रहे हैं। परमात्मा ने सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दिया. जिसके आधार पर हमने परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ा। परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ने के बाद जो खुशी मिलती है, उसका कोई ठिकाना नहीं है।
- महेन्द्रगढ़ से आए प्रो. दिनेश चहल ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान हमें आध्यात्मिक संस्कारों से जोड़ता है। यदि हमें आध्यात्मिकता मिल जाए तो हमारा जीवन बदल जाएगा। आधुनिक संसार में विज्ञान के साथ आध्यात्मिकता की आवश्यकता है। विज्ञान आगे निकल गया और अध्यात्म पीछे रह गया है। मन पर काम करना ब्रह्माकुमारीज़ में सिखाया जाता है।
- करनाल से आईं राजयोगिनी बीके प्रेम दीदी ने कहा कि सर्वोच्च समाज सेवक परमपिता परमात्मा हैं। दया, अहिंसा, प्रेम, सहानुभूति, करुणा आदि मूल्य व गुणों को जागृत करने के लिए यह सम्मेलन रखा गया है। जम्मू से आईं प्रभाग की सदस्य राजयोगिनी बीके सन्तोष बहन ने राजयोग मेडिटेशन के माध्यम से गहन शांति की अनुभूति कराई। कार्यकारी सदस्या राजयोगिनी बीके सरिता दीदी और चरखी दादरी से आए बीके सुनील भाई ने मंच संचालन किया। अमरावती महाराष्ट्र से आए कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुति दी।