- ब्रह्माकुमारीज़ की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती का 59वां पुण्य स्मृति दिवस मनाया
- संस्थापक ब्रह्मा बाबा ने प्रथम प्रशासिका के रूप में किया था नियुक्त
शिव आमंत्रण, आबू रोड। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) का 59वां पुण्य स्मृति दिवस मुख्यालय शांतिवन में आठ हजार लोगों की मौजूदगी में सोमवार को मनाया गया। इस मौके पर मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी सहित सभी वरिष्ठ भाई-बहनें मौजूद रहे।
पुष्पांजली कार्यक्रम में संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने कहा कि मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) ने हम सभी को जीवन ऊंचा बनाने के लिए श्रेष्ठ धारणाएं सिखाईं। सभी को गाइड किया और ज्ञान का स्वरूप बनकर आदर्श प्रस्तुत किया। मैंने मम्मा को नहीं देखा लेकिन वरिष्ठ दादियों से मम्मा के बारे में सुना है कि उनका जीवन कितना तपस्वी और महान था। वह इस दुनिया में रहते हुए भी न्यारीं और प्यारीं रहती थीं। मम्मा बाबा की आज्ञाकारी, वफादार और फरमानदार थीं। उनके जीवन में सच्चाई और सफाई का विशेष गुण था।
उन्होंने कहा कि मम्मा सदा कहती थीं कि जो कर्म मैं करुंगी, मुझे देखकर और करेंगे। इसलिए आप सभी के कर्म ऐसे दिव्य, श्रेष्ठ और महान हों कि आपको देखखर दूसरे भी उस राह पर चलने के लिए प्रेरित हो सकें। मम्मा ने हमें सभी को ईश्वरीय मर्यादाएं और नियम सिखाए। आज सभी संकल्प लें कि जो दिव्य कर्म वरिष्ठ दादियों, बाबा, मम्मा ने किए हैं उनके बताए मार्ग पर चलेंगे। आज भी मम्मा की प्रेरणा हम सभी को सूक्ष्म रूप में मिलती रहती है। मम्मा बचपन से ही तपस्वी और दिव्य बुद्धि की धनी थीं। उनके सामने कैसी भी परिस्थति आई लेकिन वह कभी विचलित नहीं हुईं। उन्होंने कठिन योग-साधना से स्वयं को इतना शक्तिशाली बना लिया था कि कैसा भी क्रोधी व्यक्ति उनके सामने आता था तो वह शांत हो जाता था। आप रात में 2 बजे से योग-साधना करती थीं। आपने सदा हां जी का पाठ पढ़ा।
कुशलता पूर्वक किया ईश्वरीय विद्यालय का संचालन – अतिरिक्त महासचिव राजयोगी बीके बृजमोहन ने कहा कि मम्मा के जीवन में लव एंड लॉ का बैलेंस था। कम उम्र की होने के बाद भी आपका व्यक्तित्व इतना विशाल था कि सभी को मां की अनुभूति होती थी। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में शुुरुआत में अनेक परीक्षाएं आईं लेकिन आपने अपने गंभीर स्वभाव और धैर्यता से सभी का सामना किया। मम्मा ने शुरुआत से लेकर अपने जीवन के अँतिम क्षण तक पूरे ईश्वरीय विश्व विद्यालय का संचालन कुशलता पूर्वक एक मां के समान किया। वरिष्ठ राजयोगी बीके आत्मप्रकाश भाई ने कहा कि मुझे मम्मा के साथ बहुत कुछ सीखने को मिला। उनकी कर्मातीत अवस्था आज भी हम सभी के लिए उदाहरण है।
अल्पायु में की कठिन योग-तपस्या – वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके ऊषा दीदी ने कहा कि मम्मा का जीवन हम ब्रह्मा वत्सों के लिए प्रेरणादायी, पथप्रदर्शक और ईश्वरीय मार्ग पर चलने के लिए एक मिसाल है। मम्मा ने अल्पायु में ही कठिन योग साधना से संपूर्णता की स्थिति बना ली थी। आज आपके बताए मार्ग पर चलकर लाखों ब्रह्माकुमार भाई-बहन अपना जीवन श्रेष्ठ बनाने के मार्ग पर अग्रसर हैं। आप दिव्य गुणों की सजीव मूर्ति थीं। आपको एकांत में रहना बहुत पसंद था। मम्मा का चलना, फिरना और बोलना बिल्कुल फरिश्ते जैसा था। वह सदा एकरस और स्थिर अवस्था में रहती थीं। मम्मा का हृदय इतना स्वच्छ था कि वह जो भी सुनती थी, वह उस पर अंकित हो जाता था। व्यावहारिक रूप से कर्मयोग की मिसाल थीं। यहां पुरानी दुनिया में रहते हुए भी वह नई दुनिया में रहती थीं।
1919 में अमृतसर में हुआ था जन्म – बता दें कि 1919 में अमृतसर में के साधारण परिवार में मम्मा का जन्म हुआ था। उनके बचपन का नाम ओम राधे था। जब आप ओम की ध्वनि का उच्चारण करती थीं तो पूरे वातावरण में गहन शांति छा जाती थी, इसलिए भी आप ओम राधे के नाम से लोकप्रिय हुईं। आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभावान थीं। ब्रह्मा बाबा ने कोई भी ज्ञान की बात आपको कभी दोबारा नहीं सिखाई। आप एक बार जो बात सुन लेती थीं उसी समय से अपने कर्म में शामिल कर लेती थीं। 24 जून 1965 को आपने अपने नश्वर देह का त्याग करके संपूर्णता को प्राप्त किया था?।