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सदा खुश रहने के लिए सहन करें परिस्थिति कितनी भी बड़ी हो संतुष्ट रहें - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
सदा खुश रहने के लिए सहन करें परिस्थिति कितनी भी बड़ी हो संतुष्ट रहें

सदा खुश रहने के लिए सहन करें परिस्थिति कितनी भी बड़ी हो संतुष्ट रहें

जीवन-प्रबंधन

सब खुश हैं या खुशी चाहिए! या तो खुश हैं या खुशी चाहिए दोनों में से एक ही चीज हो सकती है ना! सारे दिन में अपने आप से पूछें कि कितनी देर हम खुश रहते हैं और कितनी देर मन थोड़ा-थोड़ा ऊपर-नीचे होता है और वो जितनी देर मन ऊपर-नीचे होता है क्या उसको भी बदल कर हम सारा दिन खुश रहना चाहते हैं। अगर हमें विकल्प मिले तो क्या हम सारा दिन खुश रहना चाहेंगे या कभी-कभी। सारा दिन! हर दिन, पूरा साल और सारी जिंदगी हम खुश रहना चाहते हैं? पर क्या ये संभव है? सारे दिन में हम कहते हैं कभी-कभी खुशी, कभी-कभी उदासी, कभी-कभी शांति, कभी-कभी थोड़ा-सा चिड़चिड़ापन, कभी-कभी संतुष्ट, कभी-कभी थोड़ा-सा डर तो ये कभी-कभी दोनों चलता रहता है।
अब अपने आप से हम पूछें कि सारे दिन में हम कितने प्रतिशत खुश हैं और कितने प्रतिशत दुखी हैं और आजकल तो खुश रहने से भी इतना डर जाते हैं कि अगर घर में सभी खुश हों तो कोई ना कोई एक व्यक्ति जरूर बोलेगा कि ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए। कहीं न कहीं कुछ न कुछ हो जाता है ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए और फिर और कुछ नहीं मिलेगा तो क्या कहेंगे ज्यादा खुश नहीं हो नहीं तो किसी ना किसी की नजर ही लग जाएगी हमारी खुशी को, ये बहुत बड़ा डर है। तो जैसे ही हमने ये विचार उत्पन्न किया कि ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर ज्यादा खुश होंगे तो कुछ ना कुछ हो जायेगा, अगर ज्यादा खुश होंगे तो किसी ना किसी की नजर लग जायेगी। ये विचार डर के हैं और जैसे ही हम डरे हमारी खुशी गायब हो जाती है। खुशी आई थी रहने के लिए और हमारे साथ ही रहने वाली थी लेकिन जैसे ही हमने ये संकल्प किया कि किसी की वो न लग जाये, ये न हो जाये, किसी की ईष्र्या न हो जाए, कोई कुछ कर न दे मुझे तो मेरी खुशी गायब और फिर खुद ही अपनी खुशी गायब कर देते हैं और फिर खुद ही तुरंत क्या कहते हैं खुशी चाहिए। खुशी आई थी और सारा दिन अपने पास ही है लेकिन हम उस समय कुछ ना कुछ ऐसा अंदर सृजित कर देते हैं कि वो गायब हो जाती है।
जैसे ही हम अपने मन पर ध्यान देना शुरू कर देते हैं तो हम सिर्फ ये ध्यान देते हैं कि ये जो बीच-बीच में हम गलत वाले विचार करने शुरू कर देते हैं इसको हम करना बंद कर दें। आज हम खुशी के लिए क्या-क्या करते हैं, खुश रहने के लिए क्या करते हैं, संगीत सुनते हैं और क्या करते हैं, नयी चीजें खरीदते हैं और क्या करते हैं। भाई लोग क्या करते हैं खुश रहने के लिए, हँसते हैं। हम हँसते हैं बाहर से या अंदर वाली हँसी। आजकल उद्योगों में पूरा खंड है जिसको हम कहेंगे सेवा उद्योग, कोई रेस्टोरेंट, कोई होटल, कोई एयरलाइन या फिर ये जो हमारा सब ग्राहक सेवा केंद्र है क्रेडिट कार्ड और बाकी सारी चीजें, आप उनको देखो वो चाहे कुछ भी हो जाए, हमेशा कैसे होते हैं हमेशा हँसते रहते हैं। आप उनको जोर से डांटो वो कहेंगे धन्यवाद मैम, मैं फिर फोन करूंगा! हम कितनी भी उनसे कठोरता से बात करें, कितना भी हम बोलें कि बस अभी हमें फोन नहीं करना, मुझे नहीं खरीदना है, मैं अभी बाहर व्यस्त हूँ। हां, मैम मैं कब फोन करूँ, कल करूँ सुबह! आप उनसे कैसे भी बात करो, उनकी आवाज, उनका चेहरा, उनकी मुस्कुराहट गायब नहीं होती है वो एकदम समान हैं। आपके घर कोई सेल्समैन आता है आप उसके मुँह पे दरवाजा बंद कर दो लेकिन फिर भी उसके चेहरे की मुस्कुराहट एकदम वहीं है। वो ये कैसे कर लेते हैं और अगर वो कर सकते हैं, मतलब हम भी कर सकते हैं। कोई भी कर सकता है फिर तो, वो क्यों कर लेते हैं ये, कहाँ से ताकत आती है उनके अंदर ये कर लेने की? तनख्वाह, महत्वपूर्ण है ना! इसका मतलब अपने महीने की तनख्वाह के लिए मैं कितना भी गलत व्यवहार, कितना भी गुस्सा सहन कर सकता हूं क्योंकि मेरे अंदर वो ताकत है। क्या हम अपनी खुशी के लिए, अपने रिश्तों के लिए, अपने लिए और अपने परिवार के लिए थोड़ा बहुत सहन नहीं कर सकते हैं? कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं। अगर वो इतना सहन कर सकते हैं और वो भी परायों से सहन करते हैं जिनको वो जानते भी नहीं है उनका भी वो गुस्सा सहन कर लेते हैं। हमें तो जो गुस्सा करते हैं वो कौन हैं हमारे ही अपने हैं आसपास के हैं।
अगर वो अनजान लोगों का गुस्सा सहन कर सकते हैं सिर्फ तनख्वाह के लिए तो हम अपने परिवार की छोटी-मोटी बातें सहन नहीं कर सकते हैं खुशी के लिए! कर सकते हैं ना, पक्का! फर्क क्या? फर्क ये कि उन्होंने अपने अंदर जमा लिया है चाहे कुछ भी हो जाए हमें कैसे रहना है, हमें खुश रहना है। सिर्फ फर्क ये है वो बाहर से रहते हैं, जरूरी नहीं है वो अंदर से खुश हैं, वो बाहर से मुस्कुराते हैं। अब हमें क्या करना है बाहर से भी करना है लेकिन साथ-साथ अंदर से भी करना है क्योंकि हम बाहर की तनख्वाह के लिए नहीं कर रहे हम अंदर की खुशी के लिए कर रहे हैं। वो सिर्फ बाहर की तनख्वाह के लिए कर रहे हैं तो उनको सिर्फ बाहर से ही करना है। हम अंदर की खुशी और संतुष्टता के लिए कर रहे हैं तो हमें अंदर से करना होगा। उनको जो प्रशिक्षण मिला वो ये कि चाहे कुछ भी हो जाए आपको गुस्सा नहीं आएगा और हमें जो प्रशिक्षण मिला वो ये था कि थोड़ा-सा कोई कुछ गलत करे गुस्सा करो, ये ही फर्क है ना, प्रशिक्षण है।
जैसे-जैसे हम बड़े होते रहे हैं हमें प्रशिक्षण मिलता जाता है। उनको प्रशिक्षण मिला चाहे कुछ भी हो जाए मुस्कुराहट बनी रहनी चाहिए और हमने बचपन से ये देखा कि थोड़ी सी गलती हुई नहीं कि सामने वाले का मुंह ऐसे सूज जाता है। तो वो हमारा प्रशिक्षण था लेकिन कोई भी प्रशिक्षण को अब हम बदल सकते हैं। इस विद्यालय में जो हम मेडिटेशन सीखते हैं वो एक प्रशिक्षण ही है, एक प्रशिक्षण स्कूल है जहां पर हमें ये ही प्रशिक्षण मिलता है कि सामने वाला चाहे कुछ भी करे, कैसा भी करे, परिस्थिति चाहे कितनी भी बड़ी हो, प्रशिक्षण हमारा ये है कि अंदर से संतुष्ट रहना है।

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